जो व्यवस्था अपने पितृसत्तात्मक आग्रहों के बावजूद सभी पुरुषों तक को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार दे पाने में अक्षम है, उससे यह अपेक्षा कैसे की जा सकती है कि वह सभी स्त्रियों को यह सब उपलब्ध कराएगी! स्त्रियों की छंटनी रोकना, उन्हें प्रसूति सम्बंधी अवकाश दिलाना इत्यादि एक छोटे वर्ग को ही राहत पहुंचाएगा, क्योंकि स्त्री श्रम का काफी बड़ा हिस्सा तो असंगठित क्षेत्र में लगा हुआ है।
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बहस बदलाव के लिये