अम्बेडकरवाद को दलित विमर्श का वैचारिक आधार बताते हुए उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा है कि अम्बेडकर का बौद्ध धर्म स्वीकार करना कोई भूल नहीं थी, बल्कि दलितों को सत्ता में भागीदारी दिलाने के लिये सुविचारित ढंग से उठाया गया एक राजनैतिक कदम था। उनका मानना है कि दलित लेखकों के बीच जाति के सवाल पर दो धड़े हैं, एक वे ‘जो जातिवाद का विघटन चाहते हैं, दूसरे वे जो जातिवाद का प्रतिष्ठापन चाहते हैं।’
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दलित साहित्य 2010
दलित प्रश्न के संदर्भ में वर्ष 2010 में यह एक नई बात देखने को मिली है कि विमर्शपरक लेखन की ओर लेखकों का झुकाव बढ़ा है, जबकि सर्जनात्मक कृतियों की संख्या कम हुई है। हर बार की तरह उपन्यास विधा उपेक्षित ही रही है, लेकिन कहानियों का अभाव नहीं रहा है। रजतरानी मीनू द्वारा संपादित कहानी संग्रह हाशिये से बाहर अनामिका पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली से प्रकाशित हुआ।
Continue Readingदलित साहित्य 2009
हिंदी में मुख्यधारा का मिथक टूट चुका है, अब इसमें स्त्री विमर्श और दलित विमर्श जैसी मुख्य धाराएं हैं। दलित साहित्य ने इसमें पिछले वर्षो में अपनी इतनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई है कि अब तथाकथित मुख्यधारा भी दलित विमर्श के संदर्भ में परिभाषित होने लगी है, अब उसे गैर-दलित साहित्य कहा जाने लगा है। वर्ष 2009 में भी दलित विमर्श से संबंधित कई महत्वपूर्ण कृतियां प्रकाशित हुई हैं
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