दरअसल ‘भारतीय मुस्लिम साहित्य’ कहने से एक भ्रम का निर्माण होता है। क्योंकि विशेषतः भारत के इतिहास में मुस्लिम समाज एक साथ शासक भी रहा है और शोषित भी। यह दरार ऐतिहासिक प्रक्रिया में निर्मित हुई थी और अभी तक बनी है। जो आर्थिक रूप से सबल थे वह सत्ता के गलियारों में मुस्लिम नेता के रूप में बने रहने में कामयाब तो हुए किन्तु वह किसी भी प्रकार से आम भारतीय मुस्लिम समुदाय का नेतृत्व न कर रहे हैं और न ही कभी किया है।
Continue Readingमध्ययुगीन भक्ति आन्दोलन का एक पहलू – मुक्तिबोध
मेरे मन में बार-बार यह प्रश्न उठता है कि कबीर और निर्गुण पन्थ के अन्य कवि तथा दक्षिण के कुछ महाराष्ट्रीय सन्त तुलसीदास जी की अपेक्षा अधिक आधुनिक क्यों लगते हैं? क्या कारण है कि हिन्दी-क्षेत्र में जो सबसे अधिक धार्मिक रूप से कट्टर वर्ग है, उनमें भी तुलसीदासजी इतने लोकप्रिय हैं कि उनकी भावनाओं और वैचारिक अस्त्रों द्वारा, वह वर्ग आज भी आधुनिक दृष्टि और भावनाओं से संघर्ष करता रहता है?
Continue Readingकफन के दलित पाठ की उलझनें
बुधिया समेत सभी दलित स्त्रियों की उपेक्षा करने एवं शुचिता को स्त्री के जीवन से भी अधिक मूल्यवान मानने वाले पितृसत्तात्मक विमर्श को अधिक से अधिक ‘दलित पुरुष विमर्श’ कहा जा सकता है, जो सवर्ण पुरुष से मुक्ति की बात तो करता है, लेकिन ‘अपनी स्त्रियों’ पर वर्चस्व बनाए रखना चाहता है।
Continue Readingपर्सनल इज पॉलिटिकल – कैरोल हैनिच
मुझे बहुत ठेस पहुँचती है जब कोई कहे कि मुझे या किसी और स्त्री को मनोचिकित्सा की जरूरत है। क्योंकि स्त्रियाँ अपनी दयनीय स्थिति के लिए स्वयं जिम्मेदार नहीं है, उन्हें इस स्थिति तक पहुँचाया गया है। हमें जरूरत है इस वस्तुस्थिति को बदलने की, न कि अपने उपचार की या स्थिति के अनुसार खुद को ढालने की। उपचार का अर्थ तो अपने खोटे निजी विकल्प के अनुसार स्वयं को ढाल लेने से है।
Continue Readingमैला आंचल – नित्यानंद तिवारी
होरी और बावनदास के पास अपनी आदमियत के अलावा कोई और ताकत नहीं है। उनकी इस आदमियत की सर्वाधिक गहरी छाप उनके जीवन में कम, उनके मरने में अधिक है, क्योंकि जीने के लिये उनके पास कोई रास्ता नहीं है। उनका मरना अच्छा नहीं है, लेकिन अनिवार्य है। उनकी आदमियत में एक सार्वभौम योग्यता है, साथ ऐतिहासिक अयोग्यता भी।
Continue Readingहिंदी भाषा विज्ञान की दूसरी परम्परा
भाषा विज्ञान की कक्षाओं में विद्यार्थियों को सवाल पूछना और शंका करना नहीं सिखाया जाता। उन्हें तो शंकाओं से मुक्त कर आश्वसत किया जाता है। आश्वस्त करने का यह काम करता है शास्त्र। रामविलास शर्मा ने सबसे पहला काम यह किया कि इस शास्त्र को चुनौती दी।… बड़े नामों से आतंकित हुए बिना उन्होंने 19वीं सदी के भाषा वैज्ञानिकों और सुनीति कुमार चटर्जी की मान्यताओं का विरोध करते हुए कुछ बुनियादी सवाल पूछे और दृढ़ता से कहा कि भाषाओं का जन्म मनुष्य जाति के जन्म संबंधी धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार नहीं होता।
Continue Readingहॉब्सबॉम हमारे लिए
पूंजीवादी विश्वव्यवस्था पर उनका लेखन मार्क्सवादी विचारों की बेहतरीन अभिव्यक्ति है, पूर्व-पूंजीवाद से पूंजीवादी समाज में मनुष्यता के दर्द भरे संक्रमण का बेहतरीन आख्यान। उनका लेखन सिद्धांत के साथ व्यवहार का ऐसा सधा हुआ तालमेल है जिसमें इतिहास की बात करते हुए आख्यान भी साथ-साथ तैयार होता चलता है। इतिहास का विषय भले ही अतीत हो लेकिन उसकी वास्तविक चिंता तो हमारे वर्तमान से जुड़ी है और हॉब्सबॉम को पढ़ते हुए आप लगातार अपने वर्तमान को समझते चलते हैं।
Continue Readingमै नास्तिक क्यों हूँ – भगत सिंह
किसी गरीब तथा अनपढ़ परिवार, जैसे एक चमार या मेहतर के यहाँ पैदा होने पर इन्सान का भाग्य क्या होगा? चूँकि वह गरीब हैं, इसलिए पढ़ाई नहीं कर सकता. वह अपने उन साथियों से तिरस्कृत और त्यक्त रहता है जो ऊँची जाति में पैदा होने की वजह से अपने को उससे ऊँचा समझते हैं. उसका अज्ञान, उसकी गरीबी तथा उससे किया गया व्यवहार उसके हृदय को समाज के प्रति निष्ठुर बना देते हैं.
Continue Readingनिर्वासन चिंतन – एडवर्ड सईद
कई साल पहले मुझे समकालीन उर्दू कविता के महानतम कवि फैज़ अहमद फैज़ के साथ कुछ समय बिताने का मौका मिला था। जियाउल हक की सैनिक सरकार ने उन्हें देश-निकाला दे दिया था और संकटों से जूझ रहे बेरूत में उन्होंने शरण ली थी। …फैज़ मेरी खातिर कविताओं का अनुवाद करते रहे लेकिन जैसे-जैसे रात गहराने लगी, अनुवाद की जरूरत ही नहीं रह गई। जो मैं देख रहा था, उसके अनुवाद की जरूरत नहीं थी
Continue Readingमैला आँचल : गांव, गाँधी और ग्लोबलाइजेशन
रेणु के बाल, कंधे पर फैले हुए जिसे अपने यहाँ झोंटा बोलते हैं, झोंटा बढाए हुए । और इस रूप में मैंने पहली बार और अन्तिम बार कहिए वहीं रेणु को देखा था, घर पर । सेवक था मैं, अपने बड़े भाई का । चाय लाओ, नमकीन लाओ, ये लाओ, वो लाओ, मैं लाया करता और इसी बहाने देख भी लिया करता था कि कौन आदमी कैसा है, क्या है ।
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