‘पुरुष’ का विलोम ‘स्त्री’ – ऐसा पढ़ाने वाले बच्चों के मन में कैसा लिंगभेदी जहर भर रहे हैं। अपनी अज्ञानता में वे घरेलू कलह व हिंसा का बीजारोपण कर रहे हैं। ‘पुरुष’ व ‘स्त्री’ को प्रकृति ने विलोम नहीं पूरक बनाया है। पूरकता सहयोगी होती है, विलोमता संघर्षी।
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बलात्कार – जर्मेन ग्रीयर
अगर शारीरिक हिंसा महिलाओं के लिये अत्यधिक भयावह नहीं होती, तो अधिकांश बलात्कार कभी होते ही नहीं। अगर आप किसी पुरुष का लिंग अपने शरीर में इसलिए प्रविष्ट होने देते हैं क्योंकि वह आपकी नाक काट देगा तो निश्चित तौर पर आप अपनी नाक का कटना कहीं अधिक बुरा मानते हैं; लेकिन मूर्खतापूर्ण कानून आपकी राय से इत्तेफाक नहीं रखता। आपकी नाक काटने की सजा बलात्कार की सजा से कम ही होगी, लेकिन तब आप पर यह संदेह नहीं किया जा सकेगा कि आप अपनी नाक काटे जाने पर सहमत थीं।
Continue Reading‘बलात्कार संस्कृति’ के विरुद्ध – कविता कृष्णन
महिलाओं की सुरक्षा का शब्द काफी पिटा हुआ शब्द है। इस सुरक्षा का मतलब हम सब जानते हैं… सुरक्षा का मतलब है – अपने दायरे में रहो। घर की चारदीवारी में रहो, एक खास तरह के कपड़े पहनो। इसका मतलब कि आप अपनी आजादी से मत रहिए तब आप सुरक्षित रहिएगा। ढेर सारे पितृसत्तात्मक नियम-कानूनों को महिलाओं की सुरक्षा बनाकर परोसा जाता है। हम इस परोसी हुई थाली को पटक रहे हैं – हमें यह नहीं चाहिए।
Continue Readingपूंजीवाद एक प्रेतकथा – अरुंधती रॉय
लोगों के पास पीने का साफ पानी, या शौचालय, या खाना, या पैसा नहीं है मगर उनके पास चुनाव कार्ड या यूआइडी नंबर होंगे। क्या यह संयोग है कि इनफोसिस के पूर्व सीईओ नंदन नीलकेणी द्वारा चलाया जा रहा यूआइडी प्रोजेक्ट, जिसका प्रकट उद्देश्य ‘गरीबों को सेवाएं उपलब्ध करवाना’ है, आइटी उद्योग में बहुत ज्यादा पैसा लगाएगा जो आजकल कुछ परेशानी में है?
Continue Readingपर्सनल इज पॉलिटिकल – कैरोल हैनिच
मुझे बहुत ठेस पहुँचती है जब कोई कहे कि मुझे या किसी और स्त्री को मनोचिकित्सा की जरूरत है। क्योंकि स्त्रियाँ अपनी दयनीय स्थिति के लिए स्वयं जिम्मेदार नहीं है, उन्हें इस स्थिति तक पहुँचाया गया है। हमें जरूरत है इस वस्तुस्थिति को बदलने की, न कि अपने उपचार की या स्थिति के अनुसार खुद को ढालने की। उपचार का अर्थ तो अपने खोटे निजी विकल्प के अनुसार स्वयं को ढाल लेने से है।
Continue Readingमृणाल विमर्श के बहाने
जो व्यवस्था अपने पितृसत्तात्मक आग्रहों के बावजूद सभी पुरुषों तक को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार दे पाने में अक्षम है, उससे यह अपेक्षा कैसे की जा सकती है कि वह सभी स्त्रियों को यह सब उपलब्ध कराएगी! स्त्रियों की छंटनी रोकना, उन्हें प्रसूति सम्बंधी अवकाश दिलाना इत्यादि एक छोटे वर्ग को ही राहत पहुंचाएगा, क्योंकि स्त्री श्रम का काफी बड़ा हिस्सा तो असंगठित क्षेत्र में लगा हुआ है।
Continue Readingविवाह, वैश्यावृत्ति और प्रेम – एंगेल्स
यदि विवाहित लोगों का कर्तव्य है कि वे एक दूसरे से प्रेम करें, तो क्या प्रेमियों का यह कर्तव्य नहीं था कि वे केवल एक दूसरे से ही विवाह करें और किसी दूसरे से नहीं? और क्या इन प्रेमियों का एक दूसरे से विवाह करने का अधिकार माता-पिता, सगे-सम्बधियों और विवाह तय कराने वाले अन्य परम्परागत दलालों के अधिकार से ऊंचा नहीं था?
Continue Readingसेक्सुअल परिवर्तन की घड़ी – अभय कुमार दुबे
वेश्या और सेक्स-वर्कर बनाने के सवाल पर नारीवादियों में गहरी द्वैधवृत्ति पायी जाती है। वेश्या को मजदूर की हैसियत देने के ख्याल से ही उनका प्रच्छन्न ‘मार्क्सवादी मर्म’ आहत हो जाता है। यह इस बात का सबूत है कि भारतीय नारीवाद पर मार्क्सवाद की छायाएँ कितनी गहरी और स्थायी किस्म की हैं।
Continue Readingनारीवाद के मायने
नारीवाद स्त्रियों के लिये उसी तरह अनुकूल है जिस तरह माक्र्सवाद सर्वहाराओं के लिये लेकिन इसका अर्थ यह कभी नहीं निकालना चाहिए कि स्त्रियां स्वभावतः नारीवादी होती है! ‘नारीवाद सहजात दृष्टि न होकर अर्जित दृष्टि है’ और इसे अर्जित करने के लिए पितृसत्तात्मक विचारधारा से अलग वैकल्पिक दृष्टि विकसित करनी पड़ती है, स्वयं पितृसत्ता द्वारा (स्त्रियों/पुरुषों को) मिलने वाली सुरक्षा और सुविधाओं को त्यागना पड़ता है।
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