होरी और बावनदास के पास अपनी आदमियत के अलावा कोई और ताकत नहीं है। उनकी इस आदमियत की सर्वाधिक गहरी छाप उनके जीवन में कम, उनके मरने में अधिक है, क्योंकि जीने के लिये उनके पास कोई रास्ता नहीं है। उनका मरना अच्छा नहीं है, लेकिन अनिवार्य है। उनकी आदमियत में एक सार्वभौम योग्यता है, साथ ऐतिहासिक अयोग्यता भी।
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मैला आँचल : गांव, गाँधी और ग्लोबलाइजेशन
रेणु के बाल, कंधे पर फैले हुए जिसे अपने यहाँ झोंटा बोलते हैं, झोंटा बढाए हुए । और इस रूप में मैंने पहली बार और अन्तिम बार कहिए वहीं रेणु को देखा था, घर पर । सेवक था मैं, अपने बड़े भाई का । चाय लाओ, नमकीन लाओ, ये लाओ, वो लाओ, मैं लाया करता और इसी बहाने देख भी लिया करता था कि कौन आदमी कैसा है, क्या है ।
Continue Readingआदिवासी जीवन संघर्ष और परिवर्तन की चुनौतियां
वैश्वीकरण के इस दौर में बाजार की मांग पर आदिवासियों की नुमाइश तक हो रही है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के जारवा और आंजे समुदाय को चिड़ियाघर में बंद वन्य जंतुओं की तरह पर्यटन और विस्मय की ‘वस्तु’ बना दिया गया है- उनको केले और बिस्कुट देकर उनके साथ फोटो खिंचवाये जाते हैं। ‘विकास’ और बाजार का अद्भुत समन्वय है यह।
Continue Readingगोदान में मृत्यु और उसका सामाजिक अर्थ
होरी का अपराध यह है कि इस गरीबी के बावजूद वह मरजाद के साथ मनुष्य की तरह जीने की इच्छा पालता है। अगर होरी में मानवीयता थोड़ी कम होती तो शायद वह बच जाता, लेकिन इसी मानवीयता से तो होरी का चरित्र परिभाषित होता है। होरी बने रहने की कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है।
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