यशपाल संबंधी अपने सारे मूल्यांकन में डॉ. रामविलास शर्मा एक ओर यदि घोर नैतिकतावादी आग्रहों के शिकार हैं, तो दूसरी ओर कट्टर और सेक्टेरियन दृष्टिकोण के। उनके नैतिकतावादी आग्रहों का ही परिणाम यह होता है कि साहित्य में वह स्त्री-पुरुष संबंधों के अंकन को ही एतराज-तलब समझने लगते हैं और हिन्दी के कथाकारों पर शरतबाबू के प्रभाव को लेकर बेहद दुखी और आतंकित दिखाई देते हैं। वह एक आलोचक से कहीं ज्यादा एक दरोगा के फरायज अंजाम देने के फिक्रमंद दिखाई देते हैं।
Continue ReadingDebate Online
बहस बदलाव के लिये