स्त्री-विरोधी पितृसत्तात्मक सोच वाली सांस्कृतिक अस्मिता सबसे पहले स्त्री को ही सम्मान के प्रतीक के रूप में रखती है। … प्रतिशोध की स्याही में डूबी लेखनी साबित कर दिया करती है कि ‘उनकी’ स्त्रियां बदचलन, व्यभिचारिणी और पर-पुरूषगामी हैं। और, वह ‘परपुरूष’ कोई दूसरा नहीं, हम ही है। शत्रु पक्ष के पुरुष नामर्द हैं, नपुंसक हैं। हममें अपार पुंस है, अपरिमित वीर्य है। परिणामतः शत्रु पक्ष की सन्तानें जारज हैं हमारा ही खून है जो उनकी रगों में दौड़ा करता है।
Continue ReadingAuthor: Bajrang Bihari Tiwari
फुसफुसाहट में साजिश
संपादक मंडल को दलितों की समस्याएं अगर जड़ से मिटी दिखाई दे रही हैं तो गोहाना से लेकर खैरलांजी होते हुए मिर्चपुर तक फैली घटनाएं किस समाज से संबंधित हैं? दलितों के समक्ष अगर एकमात्र विकल्प धर्मवीर का विचार-दर्शन है तो आम्बेडकर के चिंतन पर अब उसकी क्या राय है? संपादक-मंडल दलितों के चेहरे पर ढाई हजार साल में पहली बार मुस्कराहट देख रहा है। इस चमत्कार को जारवादी नशे का परिणाम माना जाए या कुछ और?
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