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होरी का अपराध यह है कि इस गरीबी के बावजूद वह मरजाद के साथ मनुष्य की तरह जीने की इच्छा पालता है। अगर होरी में मानवीयता थोड़ी कम होती तो शायद वह बच जाता, लेकिन इसी मानवीयता से तो होरी का चरित्र परिभाषित होता है। होरी बने रहने की कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। गोदान हिन्दी साहित्य की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है। होरी की मौत हिन्दी साहित्य की सबसे करुण मौतों में से एक है। गोदान की प्रसिद्धि और महानता में होरी की इस मृत्यु की महत्वपूर्ण भूमिका है। गोदान में होरी के संपूर्ण जीवन की कथा नहीं है, इसमें केवल उसके उन अंतिम वर्षोंं की कथा है, जब होरी का जीवन घिसटते-घिसटते रूक जाता है। जिस तरह से होरी की मौत होती है, उसे एक दुर्घटना माना जा सकता है, लेकिन यह एक ऐसी दुर्घटना है जिसे टाला तो जा सकता है, लेकिन रोका नहीं जा सकता।
होरी Hori गरीब है, लेकिन गरीब आदमी के मन में भी आकांक्षाएं होती हैं। होरी जिस समाज में रहता है, उसमें किसान सम्मानित व्यक्ति माना जाता है, उसे अपनी ’मरजाद’ की परवाह करनी पड़ती है। होरी अपनी मरजाद के लिए अपने दरवाजे पर एक गाय देखना चाहता है। उसकी इस आकांक्षा का पता उपन्यास के आरंभ में ही चल जाता है। यह आकांक्षा उसके जीवन के अंत तक बनी रहती है। मरते वक्त भी होरी की ’गाय की लालसा मन में ही रह’ जाती है। एक तरह से गाय होरी की शाश्वत आकांक्षा है।
होरी किसान है, उसके परिवार का जीवन पांच बीघे (या तीन बीघे ?) खेत पर टिका है। हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव Harishchandra Shrivastava ने गोदान Godan का समाजशास्त्रीय अध्ययन करते हुए होरी की खेती को ‘गुजारे की खेती’ (Subsistence Farming) कहा है, जो केवल इतना देती है कि उससे जिया जा सके। उसमें आकांक्षाओं के लिए जगह नहीं होती है-न ही मानवीयता के लिए, लेकिन होरी में ये दोनों हैं और नतीजतन होरी Hori जी नहीं पाता।
गोदान में तीन इंसानी मौते होती है, होरी Hori की, सिलिया Siliya के बच्चे रामू तथा गोबर Gobar के बच्चे मंगल की! ये तीनों मौते परस्पर संबंिधत नहीं है, मजबूरी की तीन अलग-अलग परिस्थितियों का परिणाम है। होरी Hori की मौत का संबंध गरीबी, मरजाद और मानवीयता से है, होरी की मौत का संबंध उपन्यास में होने वाली इंसानी मौतों से कम, गाय से और गाय की मौत से अधिक है। गाय के माध्यम से ही भोला और झुनिया होरी की कथा से जुड़ते हैं। विपत्तियों का एक सिलसिला शुरू होता है। होरी गाय लेकर आता है लेकिन उस गाय का साथ होरी के परिवार को कुछ ही समय के मिल पाता है। उसका भाई हीरा Heera जलन के चलते गाय को जहर दे देता है और घर छोड़कर भाग जाता है। होरी के जीवन की वास्तविक विपत्तियों की कथा यहां से आरंभ होती है। गोबर Gobar अपनी गर्भवती प्रेमिका विधवा झुनिया Jhuniya को घर पर छोड़कर भाग जाता है, जिससे और स्थिति और भी बिगड़ जाती है। होरी पंचों को जुर्माना़ भरता है, बेसहारा पुनिया की खेती संभालता है और इसी प्रक्रिया में अपने खेत की उपेक्षा करता है। अपनी बेटी सोना Sona की शादी में अपनी क्षमता से अधिक खर्च करता है और इन सबका परिणाम यह होता है कि खेत पर आई बेदखली को टालने के लिए दो सौ रुपये लेकर वह छोटी बेटी रूपा Rupa का विवाह एक अधेड़ व्यक्ति रामसेवक से कर देता है। गाय न मरती तो होरी के बैल न जाते। गाय होरी के जीवन में कुछ देकर नहीं लेकर ही जाती है, फिर भी होरी अंतिम समय में दुबारा गाय खरीदने के बारे में सोचता है, ‘‘रुपये मिलते ही सबसे पहले वह गाय लेगा।’’ होरी के मरने के बाद उसके घर की बची-खुंची कमाई- बीस आने पैसे- ’गोदान’ Godan के नाम पर दातादीन के पास चले जाते हैं। गाय एक तरह से होरी की शाश्वत आकांक्षा है।
उपन्यास के अंत में होरी के विपत्ति भरे जीवन में कुछ सुखद परिवर्तन होते हैं, लेकिन इन परिवर्तनों का परिणाम यह होता है कि होरी Hori के मन में अपनी स्थिति को बदल देने की इच्छा पैदा हो जाती है। होरी के ऊपर रुपये इकट्ठा करने की जिद इस तरह छा जाती है कि वह रात को भी जगकर काम करता है। प्रेमचंद Premchand ने इस स्थिति का वर्णन इन शब्दों में किया है- ‘‘दिन भर लू और धूप में काम करने के बाद वह घर आता, तो बिल्कुल मरा हुआ, अवसाद का नाम नहीं। उसी उत्साह से दूसरे दिन काम करने जाता। रात को भी खाना खाकर डिब्बी के सामने बैठ जाता और सुतली कातता। कहीं बारह-एक बजे सोने जाता। धनिया भी पगला गई थी, उसे मेहनत करने से रोकने की बजाय खुद उसके साथ बैठी-बैठी सुतली कातती। गाय तो लेनी ही है, ‘‘रामसेवक के रुपए भी तो अदा करने हैं।’’
यह मेहनत होरी Hori की जान ले लेती है। मजदूरी करने के दौरान एक दिन जब ‘रात की थकान दूर नहीं हो पाई थी’ और ’देह भारी’ थी, काम करते वक्त होरी Hori को लू लग जाती है और कुछ ही घण्टों में उसकी मौत हो जाती है। गोदान होरी की स्थिति ठीक होते-होते एकाएक बिगड़ जाती है। यह स्थिति उसकी मौत को अत्यंत करुण बनाती है। गाय के लिए होरी Hori अपनी जान दे देता है, जबकि रूपा अपनी ससुराल से उसके लिए गाय भिजवा चुकी होती है, ऐसी स्थिति में यह सोचना स्वाभाविक है कि ‘‘सबसे बड़ी विडम्बना यह कि गाय पहुंचने से पहले होरी की मृत्यु हो गई। गाय समय से पहुंच जाती तो शायद होरी बच जाता। बच सकता था, पर बच नहीं पाया। यही तो ट्रेजडी है।’’
सवाल यह है कि होरी Hori के मौत के मुंह में जाने से कब तक बचता, उसे ‘रामसेवक के रुपए भी तो अदा’ करने थे, दूसरों का कर्ज भी तो चुकाना था! उसके लिए असल उद्देश्य तो यह था कि ‘‘इस साल इस रिन से गला छूट जाय, तो दूसरी जिंदगी हो।’’ होरी जिस तरह की जिंदगी जी रहा था, उसमें यह सब होना ही था। वह जब भी अपनी स्थिति बदलने के लिए कोशिश करता उसे अपनी जान दांव पर लगानी ही पड़ती। जिस खेती पर उसका परिवार आश्रित था, वह इतनी पर्याप्त हो भी नहीं सकती थी कि पेट पालने के बाद कर्ज से मुक्ति भी दिला दे। इसीलिए धनिया Dhaniya इस डर केे बाद भी कि कहीं होरी बीमार न पड़ जाय उसे काम करने से नहीं रोक पायी। होरी काम के बारे में सुनकर ‘चट-पट’ वहां जा पहुंचा था, तो इसी कारण।
यह सही है कि होरी मौत लू लगने से अचानक हो जाती है, लेकिन जिन स्थितियों में वह जी रहा था, उसकी तार्किक परिणति भर थी। लू लगना तो एक बहाना है, होरी की मौत की असली वजह तो गरीबी है, जिसके चलते धनिया Dhaniya उसके लिए दवा तक नहीं मंगा सकती।
प्रेमचंद Premchand के उपन्यासों में यह बात गौर करने लायक है कि आमतौर पर किसान की मौत या तो किसी संक्रामक बीमारी (Epidemic Disease ) से होती है या अत्यधिक शारीरिक यंत्रणा या हत्या के कारण। किसान अपने खेत में अत्यधिक श्रम करने के कारण नहीं मरता। अगर हम गोदान पर ध्यान दें तो होरी अपने जीवन में तीन बार मृत्यु का सामना करता है, पहली बार तब जब वह अपने अलावा पुनिया के खेत का भी काम संभालने लगता है और फसली बुखार की चपेट में आ जाता है, दूसरी बार तब जब दातादीन के खेत में खाली पेट मजदूरी करते हुए वह बेेहोश हो जाता है और उसकी देह ठंडी पड़ जाती है। तीसरी बार जब गर्मी की तपती दोपहरी में वह दिहाड़ी (Daily Wages) पर कंकड़ खोदने का काम करता है और उसे लू लग जाती है, इस बार होरी Hori नहीं बच पाता। अपने खेत में किसान चाहे जितना भी परिश्रम करता हो, लेकिन श्रम करने की स्थितियों और अपनी क्षमता को ध्यान में रखकर करता है, लेकिन यह सुविधा मजदूर को कहां मिलती है। गोदान Godan में पांच बीघे के एक औसत किसान के रूप में अपना जीवन शुरू करने वाला होरी अपनी खेती, मर्यादा और चैन गंवा चुकने के बाद एक मजदूर के रूप में अपना जीवन भी गंवा देता है। किसान से मजदूर बनने की प्रक्रिया होरी के लिए इतनी तकलीफदेह है कि अंतिम समय में उसके मन में और जीने की कामना नहीं रह जाती, उसके आखिरी शब्द हैं- ‘‘रो मत धनिया Dhaniya, अब कब तक जिलायेगी? सब दुर्दशा तो हो गई। अब मरने दे।’’
गोदान Godan प्रेमचंद का अंतिम तथा सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास Upanyas है। इसमें शहर भी है और गांव भी, लेकिन मूल कथा होरी की ही है। उपन्यास एक गरीब किंतु संतुष्ट किसान होरी के जीवन के एक सामान्य से दिन से शुरू होकर दरिद्र, कमजोर और मजदूर होरी की मौत के साथ खत्म हो जाता है। विद्वानों ने अक्सर गोदान Godan में शहर और गांव की कथा में मौजूद ’विभाजन’ या ’फांक’ की चर्चा की है। यह फांक उस दौर की सच्चाई है। शहरी कथा में उच्च तथा मध्यवर्गीय पात्रों के आपसी संबंध तथा उनकी सामाजिक गतिविधियों की चर्चा है; जबकि ग्रामीण कथा में होरी का पूरा संसार, उसके जीवन से लेकर उसकी मौत तक का मार्मिक वर्णन है। जो अंतर सेवासदन और निर्मला में है, वही प्रेमाश्रम Premashram और गोदान Godan में भी है। सेवासदन Sevasadan में स्त्री की घर से बाहर निकलने पर आने वाली समस्याओं का जिक्र है, तो निर्मला Nirmala में त्रासदी स्वयं घर के भीतर से ही पैदा होती है। प्रेमाश्रम Premashram में किसान और जमींदार के संबंधों की कथा कही गई है, जिसमें आगे चलकर जमींदार का जीवन ही ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है; गोदान Godan में जमींदार राय साहब कथा के छोटे से पात्र हैं, वह ज्ञानशंकर की तरह प्रत्यक्ष रूप से किसानों की सभी समस्याओं का मूल नहीं है। होरी की त्रासदी भी बाहर से थोपी हुई नहीं है, वह उसके जीवन की परिस्थितियों के भीतर से ही जन्म लेती है।
गोदान के पहले ही अध्याय में होरी की सामाजिक-आर्थिक हैसियत के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य और चरित्र का पता लग जाता है। निर्मला NIrmala की तरह ही गोदान में भी पाठक को होरी की नियति (Destiny) का पूर्वाभास मिल जाता है; लेकिन वह निर्मला Nirmala की तरह स्वप्न के जरिए मिलने वाला सांकेतिक पूर्वाभास नहीं है। होरी Hori को अपनी नियति का पता कहीं अधिक स्पष्टता से है। धनिया जब बुढ़ापे में दुर्गति की कल्पना से भयभीत होती है, तो वह कहता है, ‘‘साठ तक पहुंचने की नौबत ही नहीं आएगी धनिया Dhaniya! इसके पहले ही चल देंगे।’’ सचमुच कुछ ही वर्षों बाद वह चल बसता है। उसके जीवन में कोई महान घटना नहीं घटती है, रोजमर्रा की छोटी-छोटी घटनाएं ही धीरे-धीरे अंत की और बहाए लिए जाती है। रामविलास शर्मा Ramvilash Sharma ने बिल्कुल ठीक कहा है कि ‘‘यहां सैलाब का वेग नहीं है, लहरों के थपेड़े नहीं है। यहां ऊपर से शांत दिखने वाली नदी की भंवरे हैं, जो भीतर ही भीतर मनुष्य को दबाकर तलहटी से लगा देती है और दूसरों को वह तभी दिखाई देता है, जब उसकी लाश उतराती हुई बहने लगी।’’ यही वजह है कि गोदान Godan में हत्या और आत्महत्या जैसी एक भी घटना नहीं है।
होरी Hori का एक प्रक्रिया के तहत धीरे-धीरे पिसते हुए अंततः मर जाना उपन्यास के आंतरिक तर्क और उद्देश्य के लिए अनिवार्य है। अगर होरी Hori न मरता तो भी उसके जीवन की दुखों की कथा वही रहती जो पहले थी, लेकिन तब पाठक समस्या को उतनी गंभीरता से कैसे लेता। उसे तो किसान का शोषण ही दिखता, यह नहीं दिख पाता कि यह शोषण किसान की जान भी ले लेता है। होरी की मौत के प्रसंग में यह ध्यान रखना जरूरी है कि होरी विशिष्ट है, उसकी विशिष्टता उसके जीवन की स्थितियों की कम, उसके चरित्र की विशिष्टता अधिक है। वह केवल शोषण के चलते ही नहीं मरता, वह अपने स्वभाव के चलते भी मरता है। होरी की मौत इसलिए होती है कि वह गर्भवती विधवा झुनिया को एक बहू के रूप में अपने घर में रखता है, उसकी मौत इसलिए होती है क्यांेकि वह अपना काम छोड़कर पुनिया का बखार (Store House) भरने की कोशिश करता है। होरी जानता है कि ‘जब दूसरे के पांव तले अपनी गर्दन दबी हुई हो तो उन पांवों को सहलाने ही कुशल है।’ इसके बावजूद वह उन पांवों को सहलाने से मना कर देता है – उसकी मौत की यही वजह थी। वह पंचों की चेतावनी के बाद भी झुनिया को अपने घर में रखता है।
जिन परिस्थितियों में होरी की मौत होती है वह उसे तथा उस जैसे दूसरे किसानों मजदूरों को उपन्यास के अन्य अमीर पात्रों से बिल्कुल अलग कर देती है। लू राय साहब को नहीं लग सकती और किसी तरह लग भी गई तो लू लगना कोई ऐसी बीमारी तो है नहीं जिसे ठीक न किया जा सके-सवाल तो हैसियत का है। होरी Hori के परिवार में भी इस तरह की यह कोई पहली मौत नहीं थी, खुद धनिया Dhaniya के ‘‘तीन लड़के बचपन में ही मर गए। उसका मन आज भी कहता था, अगर उनकी दवा दारू होती तो वे बच जाते, पर वह एक धेले की दवा भी न मंगवा सकी थी।’’ इस बार भी वह डाॅक्टर को नहीं बुला पायी क्योंकि पास में पैसे नहीं थे। इसीलिए अगर होरी की मौत दुर्घटना है भी तो ऐसी दुर्घटना है जो उसकी परिस्थितियों के साथ निर्मित हुई है, जो उस जैसों के साथ ही घट सकती है।
होरी Hori का मरना अनिवार्य नहीं था, वह बच सकता था, लेकिन उन शर्तों पर जीकर नहीं जिन पर वह जीता था, अंतिम बार मिलने पर गोबर Gobar होरी से कहता है ‘‘औरों की तरह तुमने भी दूसरों का गला दबाया होता, उनकी जमा मारी होती तो तुम भी भले आदमी होते। तुमने कभी नीति को न छोड़ा यह उसी का दण्ड है।’’ अनीति न करने के बावजूद अपनी ‘गुजारे की खेती’ से होरी का गुजारा चल सकता था; अगर उसे ‘मरजाद’ की चिंता न होती, अगर हीरा के घर से भाग जाने पर उसके खेतों में उसकी बीवी पुनिया Puniya की मदद करके उसका ‘बखार भरने’ की बजाय अपना घर भरता, अगर वह झुनिया Jhuniya को घर में रखने से इंकार कर देता, अगर वह बैल खोलकर ले जाने की बात को भोला के ‘धरम’ के ऊपर न छोड़ता। लेकिन जाहिर है कि तब होरी ‘होरी’ नहीं होता। अपनी स्थितियों और स्वभाव बोध के कारण ही होरी बहुत पहले से जानता है और धनिया से कहता भी है कि ‘‘साठ तक पहुँचने की नौबत ही न आने पाएगी धनिया! इसके पहले ही चल देंगे।’’
होरी की मौत अचानक हो जाती है-लू लगने और संसार से विदा हो जाने में उसे केवल कुछ ही घंटे लगते हैं। वह धनिया से केवल एक बार कुछ कहता है और उन वाक्यों में उसकी समस्त पीड़ा और आकांक्षा सिमट आयी है, उसने ‘‘धनिया को दीन आँखों से देखा, दोनों कोनों से आँसू की दो बँूदें ढुलक पड़ीं। क्षीण स्वर में बोला-मेरा कहा-सुना माफ करना धनिया! अब जाता हूँ। गाय की लालसा मन में ही रह गयी। अब तो यहाँ के रुपए क्रिया कर्म में जायंेगे। रो मत धनिया, अब कब तक जिलायेगी? सब दुर्दशा तो हो गई। अब मरने दे।’’ इस अंतिम समय में होरी को किसी से शिकायत नहीं है, क्योंकि कुछ पाने की इच्छा नहीं है, उल्टे अपराध बोध है कुछ न दे पाने का, जिसने उसे ‘जिलाये’ रखा, सारी ‘दुर्दशा’ सही, उसके प्रति अपना कत्र्तव्य न निभा पाने का। तकलीफ है जाते-जाते अंतिम रुपयों से जीवितों के लिए गाय खरीदनें के बजाय ‘क्रिया कर्म’ में खर्च करवा देने पर।
अंतिम क्षणों में होरी की हताशा और दुःख का कारण उसके अपने जीवन का मोह नहीं, अपनों का मोह है। जिन लोगों को सुख और सुरक्षा देकर होरी निश्चिंत होना चाहता था, उन्हें बीच राह में असुरक्षित छोड़ जाने की पीड़ा होरी की अंतिम अनुभूति है। प्रेमचंद Premchand उसे बड़े ही मार्मिक ढंग से सामने रखते हैं-‘‘होरी खाट पर पड़ा शायद सब कुछ देखता था, सब कुछ समझता था; पर जबान बंद हो गयी थी। हाँ, उसकी आँखों से बहते हुए आँसू बतला रहे थे कि मोह का बंधन तोड़ना कितना कठिन हो रहा है। जो कुछ अपने से नहीं बन पड़ा, उसी के दुःख का नाम तो मोह है। पाले हुए कत्र्तव्य और निपटाये हुए कामों का क्या मोह! मोह तो उन अनाथों को छोड़ जाने में है, जिनके साथ हम अपना कत्र्तव्य न निभा सके; उन अधूरे मनसूबों में है जिन्हें हम न पूरा कर सके।’’
मरने वाले व्यक्ति के साथ दूसरों के संबंध किस प्रकार के है, इसी से निर्धारित होता है कि मुत्यु पर वे कैसा महसूस करते हैं। ‘पछाड़ खाकर’ गिर पड़ने वाली धनिया, ‘रोते हुए’ हीरा और ‘सामने खड़े’ दातादीन Datadeen के लिए होरी की मृत्यु का अर्थ अलग-अलग है। प्रेम जीवन को सुखमय बनाता है, इसीलिए प्रिय की मृत्यु सर्वाधिक दुःखदायी होती है। प्रेमी की मृत्यु दुनिया भर में ट्रेजडी के साहित्य का विषय बनी है। ‘आदिकाव्य’ Adikavya में वाल्मीकि Valmiki की पीड़ा ही यही है कि निषाद Nishad ने प्रेम में लीन पक्षियों के जोड़े में से एक को मार दिया, ‘गोदान’ Godan में इसी त्रासदी का विस्तार है। होरी के परिवार में सोना और रूपा अपने-अपने घर चली गई, गोबर भी झुनिया के साथ शहर में रहने लगा, लेकिन होरी और धनिया के लिए तो एक-दूसरे का ही सहारा था! धनिया Dhaniya के लिए होरी वह आधार था ‘जिस पर जीवन टिका हुआ था’ वह उसके ‘जीवन का संगी’ था और इसीलिए उसकी पीड़ा सबसे अधिक गहरी है।
एक आलोचक का कहना है कि होरी की मौत ‘हीरोइक’ (Heroic) नहीं है; यह बात सही है कि होरी की मौत बहुत गहरी करुणा जगाने के बावजूद होरी जैसा जीवन बिताने की प्रेरणा नहीं देती है- और न ही रचनाकार का ऐसा कोई उद्देश्य है। होरी की सबसे बड़ी त्रासदी ही यही है कि वह जिन परिस्थितियों में जी रहा है उसमें, अगर वह चाहे तब भी उसे ‘हीरोइक’ मौत नसीब नहीं हो सकती- उसका सारा जीवन अपने और अपनों के जीवन की गाड़ी खीचने में ही चुक जाता है। इसीलिए होरी की मौत उस जैसा बनने की प्रेरणा नहीं देती इसके उलट वह गोबर की पीढ़ी को यह चेतावनी देती है कि अगर उसे जीना है तो वह उस समाज को बदले जिसमें होरी मर जाता है।
होरी के अलावा जिन दो बच्चों की मौत उपन्यास मे आई है, वे मुख्य कथा का अंग नहीं है, इसके बावजूद उनकी मौत के प्रसंग गैर-जरूरी नहीं हैं। होरी गांव में जीता है, वहीं मर जाता है, गोबर Gobar की कमाई से उसे कोई लाभ नहीं होता; इस लिहाज से गोबर Gobar की शहर की कथा होरी की अपनी नियति से संबंध नहीं रखती। इसी तरह दातादीन Datadin तो होरी का शोषण करने के चलते उपन्यास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन मातादीन Matadeen की कथा का कोई लेना-देना होरी के जीवन और मृत्यु से नहीं है। फिर इन प्रसंगों और मौतों का क्या महत्व है? सामाजिक समस्याओं के समाधान और राजनीति की दृष्टि से गोदान Godan प्रेमचंद Premchand के अन्य उपन्यासों से कुछ अलग किस्म का है। इसमें सादगी के साथ समस्याओं की गंभीरता और सामाजिक यथार्थ की जटिलता को अंकित किया गया है और साथ ही यथास्थिति में परिवर्तन की मांग भी इस उपन्यास में अंतर्निहित है।
गोबर Gobar के बेटे की मौत शहरों में मजदूरों की गरीबी, आवास की समस्या, उपेक्षा, बुरी आदतें और नैतिक पतन का परिणाम है। सिलिया Siliya के बच्चे की मौत कुछ खास वजहों से बेहद महत्वपूर्ण है। जिस तरह गोबर Gobar और झुनिया Jhuniya के प्रसंग के माध्यम से यह उपन्यास Upanyas विधवा-विवाह को जोरदार समर्थन करता है, उसी तरह से सिलिया और मातादीन का संबंध अंतर्जातीय संबंधों का पक्ष लेता है। सिलिया Siliya के बच्चे की मौत केवल उपन्यास का एक मार्मिक प्रसंग भर नहीं है, जिस उद्देश्य से इन पात्रों को उपन्यास में रखा गया है, वह उसे उसकी अनिवार्य परिणति तक पहुंचाने में अपनी भूमिका अदा करता है। सिलिया Siliya का बच्चा जातिगत भेदभाव की बलि चढ़ जाता है और अपने बलिदान से वह मातादीन जैसे ब्राह्मण का हृदय परिवर्तन कर देता है।
प्रेमचंद Premchand के कथा साहित्य में किसान पात्रों की मृत्यु के बहुत से प्रसंग आए हैं। उनकी मौतें संख्या ही नहीं प्रभाव की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। किसान पात्रों की मौत का कारण अंततः उनकी गरीबी ही होती हैै। प्रेमचंद Premchand के किसान पात्र इतने सीधे, सरल और निरीह हैं कि अपनी ओर से वे किसी से झगड़ा मोल नहीं लेते, किसी का बुरा नहीं चाहते। इसके बावजूद जैसे सारी व्यवस्था ही उनकी दुश्मन होती है, वह किसान की संपत्ति और उसकी शक्ति का एक-एक कतरा चूस लेती है। इस पर भी जब वे अपनी मनुष्यता नहीं छोड़ते तो उन्हें अपनी जान देनी पड़ती है।
प्रेमचंद Premchand ने अपने कथा साहित्य में सचेत रूप से मृत्यु का बहुत मार्मिक और कलात्मक उपयोग किया है; लेकिन इन मौतों का सृजन केवल लेखकीय कौशल का परिणाम नहीं है। ये मौते एक तरफ तो उस युग का यथार्थ हैं, जिसमें लेखक अपना जीवन जी रहा था; दूसरी ओर ये लेखक की अपनी प्रतिबद्धता का प्रमाण भी हैं। यह बात आज के हिन्दी साहित्य- जिसमें आमतौर पर मृत्यु कम आती है- को देखते हुए और भी विश्वास के साथ कही जा सकती है। प्रेमचंद Premchand के साहित्य मंे आई इन मौतों को एक लेखक द्वारा अपने पाठकों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाने के लिए अपने युग में किये गये लेखकीय हस्तक्षेप के रूप में भी देखा जा सकता है।
संदर्भ
गोदान में मृत्यु और उसका सामाजिक अर्थ Godan mein mrityu ka samajik arth को जोंग किम Koh Jong Kim
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Yaha mehanata hori Hori ki jana le leti hai| majaduri karane ke daurana eka dina jaba ‘rata ki thakana dura nahim ho pai thi’ aura ’deha bhari’ thi, kama karate vakta hori Hori ko lu laga jati hai aura kucha hi ghantom mem usaki mauta ho jati hai| godana hori ki sthiti thika hote-hote ekaeka bigaड़ jati hai| yaha sthiti usaki mauta ko atyamta karuna banati hai| gaya ke lie hori Hori apani jana de deta hai, jabaki rupa apani sasurala se usake lie gaya bhijava chuki hoti hai, aisi sthiti mem yaha sochana svabhavika hai ki ‘‘sabase baड़i vidambana yaha ki gaya pahumchane se pahale hori ki mrrityu ho gai| gaya samaya se pahumcha jati to shayada hori bacha jata| bacha sakata tha, para bacha nahim paya| yahi to trejadi hai|’’
Savala yaha hai ki hori Hori ke mauta ke mumha mem jane se kaba taka bachata, use ‘ramasevaka ke rupae bhi to ada’ karane the, dusarom ka karja bhi to chukana tha! Usake lie asala uddeshya to yaha tha ki ‘‘isa sala isa rina se gala chuta jaya, to dusari jimdagi ho|’’ hori jisa taraha ki jimdagi ji raha tha, usamem yaha saba hona hi tha| vaha jaba bhi apani sthiti badalane ke lie koshisha karata use apani jana damva para lagani hi paड़ti| jisa kheti para usaka parivara Ashrita tha, vaha itani paryapta ho bhi nahim sakati thi ki peta palane ke bada karja se mukti bhi dila de| isilie dhaniya Dhaniya isa Dara kee bada bhi ki kahim hori bimara na paड़ jaya use kama karane se nahim roka payi| hori kama ke bare mem sunakara ‘chata-pata’ vaham ja pahumcha tha, to isi karana|
Yaha sahi hai ki hori mauta lu lagane se achanaka ho jati hai, lekina jina sthitiyom mem vaha ji raha tha, usaki tarkika parinati bhara thi| lu lagana to eka bahana hai, hori ki mauta ki asali vajaha to garibi hai, jisake chalate dhaniya Dhaniya usake lie dava taka nahim mamga sakati| hori ka aparadha yaha hai ki isa garibi ke bavajuda vaha marajada ke satha manushya ki taraha jine ki ichcha palata hai| agara hori mem manaviyata thoड़i kama hoti to shayada vaha bacha jata, lekina isi manaviyata se to hori ka charitra paribhashita hota hai| hori bane rahane ki kimata use apani jana dekara chukani paड़ti hai|
Premachamda Premchand ke upanyasom mem yaha bata gaura karane layaka hai ki Amataura para kisana ki mauta ya to kisi samkramaka bimari (Epidemic Disease ) se hoti hai ya atyadhika sharirika yamtrana ya hatya ke karana| kisana apane kheta mem atyadhika shrama karane ke karana nahim marata| agara hama godana para dhyana dem to hori apane jivana mem tina bara mrrityu ka samana karata hai, pahali bara taba jaba vaha apane alava puniya ke kheta ka bhi kama sambhalane lagata hai aura phasali bukhara ki chapeta mem A jata hai, dusari bara taba jaba datadina ke kheta mem khali peta majaduri karate hue vaha beehosha ho jata hai aura usaki deha thamdi paड़ jati hai| tisari bara jaba garmi ki tapati dopahari mem vaha dihaड़i (Daily Wages) para kamkaड़ khodane ka kama karata hai aura use lu laga jati hai, isa bara hori Hori nahim bacha pata| apane kheta mem kisana chahe jitana bhi parishrama karata ho, lekina shrama karane ki sthitiyom aura apani kshamata ko dhyana mem rakhakara karata hai, lekina yaha suvidha majadura ko kaham milati hai| godana Godan mem pamcha bighe ke eka ausata kisana ke rupa mem apana jivana shuru karane vala hori apani kheti, maryada aura chaina gamva chukane ke bada eka majadura ke rupa mem apana jivana bhi gamva deta hai| kisana se majadura banane ki prakriya hori ke lie itani takaliphadeha hai ki amtima samaya mem usake mana mem aura jine ki kamana nahim raha jati, usake akhiri shabda haim- ‘‘ro mata dhaniya Dhaniya, aba kaba taka jilayegi? Saba durdasha to ho gai| aba marane de|’’
Godana Godan premachamda ka amtima tatha sabase mahatvapurna upanyasa Upanyas hai| isamem shahara bhi hai aura gamva bhi, lekina mula katha hori ki hi hai| upanyasa eka gariba kimtu samtushta kisana hori ke jivana ke eka samanya se dina se shuru hokara daridra, kamajora aura majadura hori ki mauta ke satha khatma ho jata hai| vidvanom ne aksara godana Godan mem shahara aura gamva ki katha mem maujuda ’vibhajana’ ya ’phamka’ ki charcha ki hai| yaha phamka usa daura ki sachchai hai| shahari katha mem uchcha tatha madhyavargiya patrom ke apasi sambamdha tatha unaki samajika gatividhiyom ki charcha hai; jabaki gramina katha mem hori ka pura samsara, usake jivana se lekara usaki mauta taka ka marmika varnana hai| jo amtara sevasadana aura nirmala mem hai, vahi premashrama Premashram aura godana Godan mem bhi hai| sevasadana Sevasadan mem stri ki ghara se bahara nikalane para Ane vali samasyaom ka jikra hai, to nirmala Nirmala mem trasadi svayam ghara ke bhitara se hi paida hoti hai| premashrama Premashram mem kisana aura jamimdara ke sambamdhom ki katha kahi gai hai, jisamem Age chalakara jamimdara ka jivana hi jyada mahatvapurna ho jata hai; godana Godan mem jamimdara raya sahaba katha ke chote se patra haim, vaha j~nanashamkara ki taraha pratyaksha rupa se kisanom ki sabhi samasyaom ka mula nahim hai| hori ki trasadi bhi bahara se thopi hui nahim hai, vaha usake jivana ki paristhitiyom ke bhitara se hi janma leti hai|
Godana ke pahale hi adhyaya mem hori ki samajika-Arthika haisiyata ke satha-satha usake svasthya aura charitra ka pata laga jata hai| nirmala nirmala ki taraha hi godana mem bhi pathaka ko hori ki niyati (Destiny) ka purvabhasa mila jata hai; lekina vaha nirmala Nirmala ki taraha svapna ke jarie milane vala samketika purvabhasa nahim hai| hori Hori ko apani niyati ka pata kahim adhika spashtata se hai| dhaniya jaba buढ़ape mem durgati ki kalpana se bhayabhita hoti hai, to vaha kahata hai, ‘‘satha taka pahumchane ki naubata hi nahim aegi dhaniya Dhaniya! Isake pahale hi chala demge|’’ sachamucha kucha hi varshom bada vaha chala basata hai| usake jivana mem koi mahana ghatana nahim ghatati hai, rojamarra ki choti-choti ghatanaem hi dhire-dhire amta ki aura bahae lie jati hai| ramavilasa sharma Ramvilash Sharma ne bilkula thika kaha hai ki ‘‘yaham sailaba ka vega nahim hai, laharom ke thapeड़e nahim hai| yaham Upara se shamta dikhane vali nadi ki bhamvare haim, jo bhitara hi bhitara manushya ko dabakara talahati se laga deti hai aura dusarom ko vaha tabhi dikhai deta hai, jaba usaki lasha utarati hui bahane lagi|’’ yahi vajaha hai ki godana Godan mem hatya aura atmahatya jaisi eka bhi ghatana nahim hai|
Hori Hori ka eka prakriya ke tahata dhire-dhire pisate hue amtatah mara jana upanyasa ke amtarika tarka aura uddeshya ke lie anivarya hai| agara hori Hori na marata to bhi usake jivana ki dukhom ki katha vahi rahati jo pahale thi, lekina taba pathaka samasya ko utani gambhirata se kaise leta| use to kisana ka shoshana hi dikhata, yaha nahim dikha pata ki yaha shoshana kisana ki jana bhi le leta hai| hori ki mauta ke prasamga mem yaha dhyana rakhana jaruri hai ki hori vishishta hai, usaki vishishtata usake jivana ki sthitiyom ki kama, usake charitra ki vishishtata adhika hai| vaha kevala shoshana ke chalate hi nahim marata, vaha apane svabhava ke chalate bhi marata hai| hori ki mauta isalie hoti hai ki vaha garbhavati vidhava jhuniya ko eka bahu ke rupa mem apane ghara mem rakhata hai, usaki mauta isalie hoti hai kyameki vaha apana kama choड़kara puniya ka bakhara (Store House) bharane ki koshisha karata hai| hori janata hai ki ‘jaba dusare ke pamva tale apani gardana dabi hui ho to una pamvom ko sahalane hi kushala hai|’ isake bavajuda vaha una pamvom ko sahalane se mana kara deta hai – usaki mauta ki yahi vajaha thi| vaha pamchom ki chetavani ke bada bhi jhuniya ko apane ghara mem rakhata hai|
Jina paristhitiyom mem hori ki mauta hoti hai vaha use tatha usa jaise dusare kisanom majadurom ko upanyasa ke anya amira patrom se bilkula alaga kara deti hai| lu raya sahaba ko nahim laga sakati aura kisi taraha laga bhi gai to lu lagana koi aisi bimari to hai nahim jise thika na kiya ja sake-savala to haisiyata ka hai| hori Hori ke parivara mem bhi isa taraha ki yaha koi pahali mauta nahim thi, khuda dhaniya Dhaniya ke ‘‘tina laड़ke bachapana mem hi mara gae| usaka mana Aja bhi kahata tha, agara unaki dava daru hoti to ve bacha jate, para vaha eka dhele ki dava bhi na mamgava saki thi|’’ isa bara bhi vaha DA.cktara ko nahim bula payi kyomki pasa mem paise nahim the| isilie agara hori ki mauta durghatana hai bhi to aisi durghatana hai jo usaki paristhitiyom ke satha nirmita hui hai, jo usa jaisom ke satha hi ghata sakati hai|
Hori Hori ka marana anivarya nahim tha, vaha bacha sakata tha, lekina una shartom para jikara nahim jina para vaha jita tha, amtima bara milane para gobara Gobar hori se kahata hai ‘‘aurom ki taraha tumane bhi dusarom ka gala dabaya hota, unaki jama mari hoti to tuma bhi bhale adami hote| tumane kabhi niti ko na choड़a yaha usi ka danda hai|’’ aniti na karane ke bavajuda apani ‘gujare ki kheti’ se hori ka gujara chala sakata tha; agara use ‘marajada’ ki chimta na hoti, agara hira ke ghara se bhaga jane para usake khetom mem usaki bivi puniya Puniya ki madada karake usaka ‘bakhara bharane’ ki bajaya apana ghara bharata, agara vaha jhuniya Jhuniya ko ghara mem rakhane se imkara kara deta, agara vaha baila kholakara le jane ki bata ko bhola ke ‘dharama’ ke Upara na choड़ta| lekina jahira hai ki taba hori ‘hori’ nahim hota| apani sthitiyom aura svabhava bodha ke karana hi hori bahuta pahale se janata hai aura dhaniya se kahata bhi hai ki ‘‘satha taka pahu.Nchane ki naubata hi na Ane paegi dhaniya! Isake pahale hi chala demge|’’
Hori ki mauta achanaka ho jati hai-lu lagane aura samsara se vida ho jane mem use kevala kucha hi ghamte lagate haim| vaha dhaniya se kevala eka bara kucha kahata hai aura una vakyom mem usaki samasta piड़a aura akamksha simata ayi hai, usane ‘‘dhaniya ko dina A.nkhom se dekha, donom konom se A.nsu ki do ba.nudem Dhulaka paड़im| kshina svara mem bola-mera kaha-suna mapha karana dhaniya! Aba jata hu.N| gaya ki lalasa mana mem hi raha gayi| aba to yaha.N ke rupae kriya karma mem jayamege| ro mata dhaniya, aba kaba taka jilayegi? Saba durdasha to ho gai| aba marane de|’’ isa amtima samaya mem hori ko kisi se shikayata nahim hai, kyomki kucha pane ki ichcha nahim hai, ulte aparadha bodha hai kucha na de pane ka, jisane use ‘jilaye’ rakha, sari ‘durdasha’ sahi, usake prati apana katrtavya na nibha pane ka| takalipha hai jate-jate amtima rupayom se jivitom ke lie gaya kharidanem ke bajaya ‘kriya karma’ mem kharcha karava dene para|
Amtima kshanom mem hori ki hatasha aura duhkha ka karana usake apane jivana ka moha nahim, apanom ka moha hai| jina logom ko sukha aura suraksha dekara hori nishchimta hona chahata tha, unhem bicha raha mem asurakshita choड़ jane ki piड़a hori ki amtima anubhuti hai| premachamda Premchand use baड़e hi marmika dhamga se samane rakhate haim-‘‘hori khata para paड़a shayada saba kucha dekhata tha, saba kucha samajhata tha; para jabana bamda ho gayi thi| ha.N, usaki A.nkhom se bahate hue A.nsu batala rahe the ki moha ka bamdhana toड़na kitana kathina ho raha hai| jo kucha apane se nahim bana paड़a, usi ke duhkha ka nama to moha hai| pale hue katrtavya aura nipataye hue kamom ka kya moha! Moha to una anathom ko choड़ jane mem hai, jinake satha hama apana katrtavya na nibha sake; una adhure manasubom mem hai jinhem hama na pura kara sake|’’
Marane vale vyakti ke satha dusarom ke sambamdha kisa prakara ke hai, isi se nirdharita hota hai ki mutyu para ve kaisa mahasusa karate haim| ‘pachaड़ khakara’ gira paड़ne vali dhaniya, ‘rote hue’ hira aura ‘samane khaड़e’ datadina Datadeen ke lie hori ki mrrityu ka artha alaga-alaga hai| prema jivana ko sukhamaya banata hai, isilie priya ki mrrityu sarvadhika duhkhadayi hoti hai| premi ki mrrityu duniya bhara mem trejadi ke sahitya ka vishaya bani hai| ‘adikavya’ Adikavya mem valmiki Valmiki ki piड़a hi yahi hai ki nishada Nishad ne prema mem lina pakshiyom ke joड़e mem se eka ko mara diya, ‘godana’ Godan mem isi trasadi ka vistara hai| hori ke parivara mem sona aura rupa apane-apane ghara chali gai, gobara bhi jhuniya ke satha shahara mem rahane laga, lekina hori aura dhaniya ke lie to eka-dusare ka hi sahara tha! Dhaniya Dhaniya ke lie hori vaha adhara tha ‘jisa para jivana tika hua tha’ vaha usake ‘jivana ka samgi’ tha aura isilie usaki piड़a sabase adhika gahari hai|
Eka Alochaka ka kahana hai ki hori ki mauta ‘hiroika’ (Heroic) nahim hai; yaha bata sahi hai ki hori ki mauta bahuta gahari karuna jagane ke bavajuda hori jaisa jivana bitane ki prerana nahim deti hai- aura na hi rachanakara ka aisa koi uddeshya hai| hori ki sabase baड़i trasadi hi yahi hai ki vaha jina paristhitiyom mem ji raha hai usamem, agara vaha chahe taba bhi use ‘hiroika’ mauta nasiba nahim ho sakati- usaka sara jivana apane aura apanom ke jivana ki gaड़i khichane mem hi chuka jata hai| isilie hori ki mauta usa jaisa banane ki prerana nahim deti isake ulata vaha gobara ki piढ़i ko yaha chetavani deti hai ki agara use jina hai to vaha usa samaja ko badale jisamem hori mara jata hai|
Hori ke alava jina do bachchom ki mauta upanyasa me AI hai, ve mukhya katha ka amga nahim hai, isake bavajuda unaki mauta ke prasamga gaira-jaruri nahim haim| hori gamva mem jita hai, vahim mara jata hai, gobara Gobar ki kamai se use koi labha nahim hota; isa lihaja se gobara Gobar ki shahara ki katha hori ki apani niyati se sambamdha nahim rakhati| isi taraha datadina Datadin to hori ka shoshana karane ke chalate upanyasa mem eka mahatvapurna bhumika nibhate haim, lekina matadina Matadeen ki katha ka koi lena-dena hori ke jivana aura mrrityu se nahim hai| phira ina prasamgom aura mautom ka kya mahatva hai? Samajika samasyaom ke samadhana aura rajaniti ki drrishti se godana Godan premachamda Premchand ke anya upanyasom se kucha alaga kisma ka hai| isamem sadagi ke satha samasyaom ki gambhirata aura samajika yathartha ki jatilata ko amkita kiya gaya hai aura satha hi yathasthiti mem parivartana ki mamga bhi isa upanyasa mem amtarnihita hai|
Gobara Gobar ke bete ki mauta shaharom mem majadurom ki garibi, avasa ki samasya, upeksha, buri adatem aura naitika patana ka parinama hai| siliya Siliya ke bachche ki mauta kucha khasa vajahom se behada mahatvapurna hai| jisa taraha gobara Gobar aura jhuniya Jhuniya ke prasamga ke madhyama se yaha upanyasa Upanyas vidhava-vivaha ko joradara samarthana karata hai, usi taraha se siliya aura matadina ka sambamdha amtarjatiya sambamdhom ka paksha leta hai| siliya Siliya ke bachche ki mauta kevala upanyasa ka eka marmika prasamga bhara nahim hai, jisa uddeshya se ina patrom ko upanyasa mem rakha gaya hai, vaha use usaki anivarya parinati taka pahumchane mem apani bhumika ada karata hai| siliya Siliya ka bachcha jatigata bhedabhava ki bali chaढ़ jata hai aura apane balidana se vaha matadina jaise brahmana ka hrridaya parivartana kara deta hai|
Premachamda Premchand ke katha sahitya mem kisana patrom ki mrrityu ke bahuta se prasamga Ae haim| unaki mautem samkhya hi nahim prabhava ki drrishti se bhi mahatvapurna haim| kisana patrom ki mauta ka karana amtatah unaki garibi hi hoti haiai| premachamda Premchand ke kisana patra itane sidhe, sarala aura niriha haim ki apani ora se ve kisi se jhagaड़a mola nahim lete, kisi ka bura nahim chahate| isake bavajuda jaise sari vyavastha hi unaki dushmana hoti hai, vaha kisana ki sampatti aura usaki shakti ka eka-eka katara chusa leti hai| isa para bhi jaba ve apani manushyata nahim choड़te to unhem apani jana deni paड़ti hai|
Premachamda Premchand ne apane katha sahitya mem sacheta rupa se mrrityu ka bahuta marmika aura kalatmaka upayoga kiya hai; lekina ina mautom ka srrijana kevala lekhakiya kaushala ka parinama nahim hai| ye maute eka tarapha to usa yuga ka yathartha haim, jisamem lekhaka apana jivana ji raha tha; dusari ora ye lekhaka ki apani pratibaddhata ka pramana bhi haim| yaha bata Aja ke hindi sahitya- jisamem Amataura para mrrityu kama ati hai- ko dekhate hue aura bhi vishvasa ke satha kahi ja sakati hai| premachamda Premchand ke sahitya mame AI ina mautom ko eka lekhaka dvara apane pathakom ko unake kartavyom ke prati jagaruka banane ke lie apane yuga mem kiye gaye lekhakiya hastakshepa ke rupa mem bhi dekha ja sakata hai|
Samdarbha
Godan mein mrityu aur usaka samajik arth Koh Jong Kim</div>
होरी Hori गरीब है, लेकिन गरीब आदमी के मन में भी आकांक्षाएं होती हैं। होरी जिस समाज में रहता है, उसमें किसान सम्मानित व्यक्ति माना जाता है, उसे अपनी ’मरजाद’ की परवाह करनी पड़ती है। होरी अपनी मरजाद के लिए अपने दरवाजे पर एक गाय देखना चाहता है। उसकी इस आकांक्षा का पता उपन्यास के आरंभ में ही चल जाता है। यह आकांक्षा उसके जीवन के अंत तक बनी रहती है। मरते वक्त भी होरी की ’गाय की लालसा मन में ही रह’ जाती है। एक तरह से गाय होरी की शाश्वत आकांक्षा है।
होरी किसान है, उसके परिवार का जीवन पांच बीघे (या तीन बीघे ?) खेत पर टिका है। हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव Harishchandra Shrivastava ने गोदान Godan का समाजशास्त्रीय अध्ययन करते हुए होरी की खेती को ‘गुजारे की खेती’ (Subsistence Farming) कहा है, जो केवल इतना देती है कि उससे जिया जा सके। उसमें आकांक्षाओं के लिए जगह नहीं होती है-न ही मानवीयता के लिए, लेकिन होरी में ये दोनों हैं और नतीजतन होरी Hori जी नहीं पाता।
गोदान में तीन इंसानी मौते होती है, होरी Hori की, सिलिया Siliya के बच्चे रामू तथा गोबर Gobar के बच्चे मंगल की! ये तीनों मौते परस्पर संबंिधत नहीं है, मजबूरी की तीन अलग-अलग परिस्थितियों का परिणाम है। होरी Hori की मौत का संबंध गरीबी, मरजाद और मानवीयता से है, होरी की मौत का संबंध उपन्यास में होने वाली इंसानी मौतों से कम, गाय से और गाय की मौत से अधिक है। गाय के माध्यम से ही भोला और झुनिया होरी की कथा से जुड़ते हैं। विपत्तियों का एक सिलसिला शुरू होता है। होरी गाय लेकर आता है लेकिन उस गाय का साथ होरी के परिवार को कुछ ही समय के मिल पाता है। उसका भाई हीरा Heera जलन के चलते गाय को जहर दे देता है और घर छोड़कर भाग जाता है। होरी के जीवन की वास्तविक विपत्तियों की कथा यहां से आरंभ होती है। गोबर Gobar अपनी गर्भवती प्रेमिका विधवा झुनिया Jhuniya को घर पर छोड़कर भाग जाता है, जिससे और स्थिति और भी बिगड़ जाती है। होरी पंचों को जुर्माना़ भरता है, बेसहारा पुनिया की खेती संभालता है और इसी प्रक्रिया में अपने खेत की उपेक्षा करता है। अपनी बेटी सोना Sona की शादी में अपनी क्षमता से अधिक खर्च करता है और इन सबका परिणाम यह होता है कि खेत पर आई बेदखली को टालने के लिए दो सौ रुपये लेकर वह छोटी बेटी रूपा Rupa का विवाह एक अधेड़ व्यक्ति रामसेवक से कर देता है। गाय न मरती तो होरी के बैल न जाते। गाय होरी के जीवन में कुछ देकर नहीं लेकर ही जाती है, फिर भी होरी अंतिम समय में दुबारा गाय खरीदने के बारे में सोचता है, ‘‘रुपये मिलते ही सबसे पहले वह गाय लेगा।’’ होरी के मरने के बाद उसके घर की बची-खुंची कमाई- बीस आने पैसे- ’गोदान’ Godan के नाम पर दातादीन के पास चले जाते हैं। गाय एक तरह से होरी की शाश्वत आकांक्षा है।
उपन्यास के अंत में होरी के विपत्ति भरे जीवन में कुछ सुखद परिवर्तन होते हैं, लेकिन इन परिवर्तनों का परिणाम यह होता है कि होरी Hori के मन में अपनी स्थिति को बदल देने की इच्छा पैदा हो जाती है। होरी के ऊपर रुपये इकट्ठा करने की जिद इस तरह छा जाती है कि वह रात को भी जगकर काम करता है। प्रेमचंद Premchand ने इस स्थिति का वर्णन इन शब्दों में किया है- ‘‘दिन भर लू और धूप में काम करने के बाद वह घर आता, तो बिल्कुल मरा हुआ, अवसाद का नाम नहीं। उसी उत्साह से दूसरे दिन काम करने जाता। रात को भी खाना खाकर डिब्बी के सामने बैठ जाता और सुतली कातता। कहीं बारह-एक बजे सोने जाता। धनिया भी पगला गई थी, उसे मेहनत करने से रोकने की बजाय खुद उसके साथ बैठी-बैठी सुतली कातती। गाय तो लेनी ही है, ‘‘रामसेवक के रुपए भी तो अदा करने हैं।’’
यह मेहनत होरी Hori की जान ले लेती है। मजदूरी करने के दौरान एक दिन जब ‘रात की थकान दूर नहीं हो पाई थी’ और ’देह भारी’ थी, काम करते वक्त होरी Hori को लू लग जाती है और कुछ ही घण्टों में उसकी मौत हो जाती है। गोदान होरी की स्थिति ठीक होते-होते एकाएक बिगड़ जाती है। यह स्थिति उसकी मौत को अत्यंत करुण बनाती है। गाय के लिए होरी Hori अपनी जान दे देता है, जबकि रूपा अपनी ससुराल से उसके लिए गाय भिजवा चुकी होती है, ऐसी स्थिति में यह सोचना स्वाभाविक है कि ‘‘सबसे बड़ी विडम्बना यह कि गाय पहुंचने से पहले होरी की मृत्यु हो गई। गाय समय से पहुंच जाती तो शायद होरी बच जाता। बच सकता था, पर बच नहीं पाया। यही तो ट्रेजडी है।’’
सवाल यह है कि होरी Hori के मौत के मुंह में जाने से कब तक बचता, उसे ‘रामसेवक के रुपए भी तो अदा’ करने थे, दूसरों का कर्ज भी तो चुकाना था! उसके लिए असल उद्देश्य तो यह था कि ‘‘इस साल इस रिन से गला छूट जाय, तो दूसरी जिंदगी हो।’’ होरी जिस तरह की जिंदगी जी रहा था, उसमें यह सब होना ही था। वह जब भी अपनी स्थिति बदलने के लिए कोशिश करता उसे अपनी जान दांव पर लगानी ही पड़ती। जिस खेती पर उसका परिवार आश्रित था, वह इतनी पर्याप्त हो भी नहीं सकती थी कि पेट पालने के बाद कर्ज से मुक्ति भी दिला दे। इसीलिए धनिया Dhaniya इस डर केे बाद भी कि कहीं होरी बीमार न पड़ जाय उसे काम करने से नहीं रोक पायी। होरी काम के बारे में सुनकर ‘चट-पट’ वहां जा पहुंचा था, तो इसी कारण।
यह सही है कि होरी मौत लू लगने से अचानक हो जाती है, लेकिन जिन स्थितियों में वह जी रहा था, उसकी तार्किक परिणति भर थी। लू लगना तो एक बहाना है, होरी की मौत की असली वजह तो गरीबी है, जिसके चलते धनिया Dhaniya उसके लिए दवा तक नहीं मंगा सकती।
प्रेमचंद Premchand के उपन्यासों में यह बात गौर करने लायक है कि आमतौर पर किसान की मौत या तो किसी संक्रामक बीमारी (Epidemic Disease ) से होती है या अत्यधिक शारीरिक यंत्रणा या हत्या के कारण। किसान अपने खेत में अत्यधिक श्रम करने के कारण नहीं मरता। अगर हम गोदान पर ध्यान दें तो होरी अपने जीवन में तीन बार मृत्यु का सामना करता है, पहली बार तब जब वह अपने अलावा पुनिया के खेत का भी काम संभालने लगता है और फसली बुखार की चपेट में आ जाता है, दूसरी बार तब जब दातादीन के खेत में खाली पेट मजदूरी करते हुए वह बेेहोश हो जाता है और उसकी देह ठंडी पड़ जाती है। तीसरी बार जब गर्मी की तपती दोपहरी में वह दिहाड़ी (Daily Wages) पर कंकड़ खोदने का काम करता है और उसे लू लग जाती है, इस बार होरी Hori नहीं बच पाता। अपने खेत में किसान चाहे जितना भी परिश्रम करता हो, लेकिन श्रम करने की स्थितियों और अपनी क्षमता को ध्यान में रखकर करता है, लेकिन यह सुविधा मजदूर को कहां मिलती है। गोदान Godan में पांच बीघे के एक औसत किसान के रूप में अपना जीवन शुरू करने वाला होरी अपनी खेती, मर्यादा और चैन गंवा चुकने के बाद एक मजदूर के रूप में अपना जीवन भी गंवा देता है। किसान से मजदूर बनने की प्रक्रिया होरी के लिए इतनी तकलीफदेह है कि अंतिम समय में उसके मन में और जीने की कामना नहीं रह जाती, उसके आखिरी शब्द हैं- ‘‘रो मत धनिया Dhaniya, अब कब तक जिलायेगी? सब दुर्दशा तो हो गई। अब मरने दे।’’
गोदान Godan प्रेमचंद का अंतिम तथा सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास Upanyas है। इसमें शहर भी है और गांव भी, लेकिन मूल कथा होरी की ही है। उपन्यास एक गरीब किंतु संतुष्ट किसान होरी के जीवन के एक सामान्य से दिन से शुरू होकर दरिद्र, कमजोर और मजदूर होरी की मौत के साथ खत्म हो जाता है। विद्वानों ने अक्सर गोदान Godan में शहर और गांव की कथा में मौजूद ’विभाजन’ या ’फांक’ की चर्चा की है। यह फांक उस दौर की सच्चाई है। शहरी कथा में उच्च तथा मध्यवर्गीय पात्रों के आपसी संबंध तथा उनकी सामाजिक गतिविधियों की चर्चा है; जबकि ग्रामीण कथा में होरी का पूरा संसार, उसके जीवन से लेकर उसकी मौत तक का मार्मिक वर्णन है। जो अंतर सेवासदन और निर्मला में है, वही प्रेमाश्रम Premashram और गोदान Godan में भी है। सेवासदन Sevasadan में स्त्री की घर से बाहर निकलने पर आने वाली समस्याओं का जिक्र है, तो निर्मला Nirmala में त्रासदी स्वयं घर के भीतर से ही पैदा होती है। प्रेमाश्रम Premashram में किसान और जमींदार के संबंधों की कथा कही गई है, जिसमें आगे चलकर जमींदार का जीवन ही ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है; गोदान Godan में जमींदार राय साहब कथा के छोटे से पात्र हैं, वह ज्ञानशंकर की तरह प्रत्यक्ष रूप से किसानों की सभी समस्याओं का मूल नहीं है। होरी की त्रासदी भी बाहर से थोपी हुई नहीं है, वह उसके जीवन की परिस्थितियों के भीतर से ही जन्म लेती है।
गोदान के पहले ही अध्याय में होरी की सामाजिक-आर्थिक हैसियत के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य और चरित्र का पता लग जाता है। निर्मला NIrmala की तरह ही गोदान में भी पाठक को होरी की नियति (Destiny) का पूर्वाभास मिल जाता है; लेकिन वह निर्मला Nirmala की तरह स्वप्न के जरिए मिलने वाला सांकेतिक पूर्वाभास नहीं है। होरी Hori को अपनी नियति का पता कहीं अधिक स्पष्टता से है। धनिया जब बुढ़ापे में दुर्गति की कल्पना से भयभीत होती है, तो वह कहता है, ‘‘साठ तक पहुंचने की नौबत ही नहीं आएगी धनिया Dhaniya! इसके पहले ही चल देंगे।’’ सचमुच कुछ ही वर्षों बाद वह चल बसता है। उसके जीवन में कोई महान घटना नहीं घटती है, रोजमर्रा की छोटी-छोटी घटनाएं ही धीरे-धीरे अंत की और बहाए लिए जाती है। रामविलास शर्मा Ramvilash Sharma ने बिल्कुल ठीक कहा है कि ‘‘यहां सैलाब का वेग नहीं है, लहरों के थपेड़े नहीं है। यहां ऊपर से शांत दिखने वाली नदी की भंवरे हैं, जो भीतर ही भीतर मनुष्य को दबाकर तलहटी से लगा देती है और दूसरों को वह तभी दिखाई देता है, जब उसकी लाश उतराती हुई बहने लगी।’’ यही वजह है कि गोदान Godan में हत्या और आत्महत्या जैसी एक भी घटना नहीं है।
होरी Hori का एक प्रक्रिया के तहत धीरे-धीरे पिसते हुए अंततः मर जाना उपन्यास के आंतरिक तर्क और उद्देश्य के लिए अनिवार्य है। अगर होरी Hori न मरता तो भी उसके जीवन की दुखों की कथा वही रहती जो पहले थी, लेकिन तब पाठक समस्या को उतनी गंभीरता से कैसे लेता। उसे तो किसान का शोषण ही दिखता, यह नहीं दिख पाता कि यह शोषण किसान की जान भी ले लेता है। होरी की मौत के प्रसंग में यह ध्यान रखना जरूरी है कि होरी विशिष्ट है, उसकी विशिष्टता उसके जीवन की स्थितियों की कम, उसके चरित्र की विशिष्टता अधिक है। वह केवल शोषण के चलते ही नहीं मरता, वह अपने स्वभाव के चलते भी मरता है। होरी की मौत इसलिए होती है कि वह गर्भवती विधवा झुनिया को एक बहू के रूप में अपने घर में रखता है, उसकी मौत इसलिए होती है क्यांेकि वह अपना काम छोड़कर पुनिया का बखार (Store House) भरने की कोशिश करता है। होरी जानता है कि ‘जब दूसरे के पांव तले अपनी गर्दन दबी हुई हो तो उन पांवों को सहलाने ही कुशल है।’ इसके बावजूद वह उन पांवों को सहलाने से मना कर देता है – उसकी मौत की यही वजह थी। वह पंचों की चेतावनी के बाद भी झुनिया को अपने घर में रखता है।
जिन परिस्थितियों में होरी की मौत होती है वह उसे तथा उस जैसे दूसरे किसानों मजदूरों को उपन्यास के अन्य अमीर पात्रों से बिल्कुल अलग कर देती है। लू राय साहब को नहीं लग सकती और किसी तरह लग भी गई तो लू लगना कोई ऐसी बीमारी तो है नहीं जिसे ठीक न किया जा सके-सवाल तो हैसियत का है। होरी Hori के परिवार में भी इस तरह की यह कोई पहली मौत नहीं थी, खुद धनिया Dhaniya के ‘‘तीन लड़के बचपन में ही मर गए। उसका मन आज भी कहता था, अगर उनकी दवा दारू होती तो वे बच जाते, पर वह एक धेले की दवा भी न मंगवा सकी थी।’’ इस बार भी वह डाॅक्टर को नहीं बुला पायी क्योंकि पास में पैसे नहीं थे। इसीलिए अगर होरी की मौत दुर्घटना है भी तो ऐसी दुर्घटना है जो उसकी परिस्थितियों के साथ निर्मित हुई है, जो उस जैसों के साथ ही घट सकती है।
होरी Hori का मरना अनिवार्य नहीं था, वह बच सकता था, लेकिन उन शर्तों पर जीकर नहीं जिन पर वह जीता था, अंतिम बार मिलने पर गोबर Gobar होरी से कहता है ‘‘औरों की तरह तुमने भी दूसरों का गला दबाया होता, उनकी जमा मारी होती तो तुम भी भले आदमी होते। तुमने कभी नीति को न छोड़ा यह उसी का दण्ड है।’’ अनीति न करने के बावजूद अपनी ‘गुजारे की खेती’ से होरी का गुजारा चल सकता था; अगर उसे ‘मरजाद’ की चिंता न होती, अगर हीरा के घर से भाग जाने पर उसके खेतों में उसकी बीवी पुनिया Puniya की मदद करके उसका ‘बखार भरने’ की बजाय अपना घर भरता, अगर वह झुनिया Jhuniya को घर में रखने से इंकार कर देता, अगर वह बैल खोलकर ले जाने की बात को भोला के ‘धरम’ के ऊपर न छोड़ता। लेकिन जाहिर है कि तब होरी ‘होरी’ नहीं होता। अपनी स्थितियों और स्वभाव बोध के कारण ही होरी बहुत पहले से जानता है और धनिया से कहता भी है कि ‘‘साठ तक पहुँचने की नौबत ही न आने पाएगी धनिया! इसके पहले ही चल देंगे।’’
होरी की मौत अचानक हो जाती है-लू लगने और संसार से विदा हो जाने में उसे केवल कुछ ही घंटे लगते हैं। वह धनिया से केवल एक बार कुछ कहता है और उन वाक्यों में उसकी समस्त पीड़ा और आकांक्षा सिमट आयी है, उसने ‘‘धनिया को दीन आँखों से देखा, दोनों कोनों से आँसू की दो बँूदें ढुलक पड़ीं। क्षीण स्वर में बोला-मेरा कहा-सुना माफ करना धनिया! अब जाता हूँ। गाय की लालसा मन में ही रह गयी। अब तो यहाँ के रुपए क्रिया कर्म में जायंेगे। रो मत धनिया, अब कब तक जिलायेगी? सब दुर्दशा तो हो गई। अब मरने दे।’’ इस अंतिम समय में होरी को किसी से शिकायत नहीं है, क्योंकि कुछ पाने की इच्छा नहीं है, उल्टे अपराध बोध है कुछ न दे पाने का, जिसने उसे ‘जिलाये’ रखा, सारी ‘दुर्दशा’ सही, उसके प्रति अपना कत्र्तव्य न निभा पाने का। तकलीफ है जाते-जाते अंतिम रुपयों से जीवितों के लिए गाय खरीदनें के बजाय ‘क्रिया कर्म’ में खर्च करवा देने पर।
अंतिम क्षणों में होरी की हताशा और दुःख का कारण उसके अपने जीवन का मोह नहीं, अपनों का मोह है। जिन लोगों को सुख और सुरक्षा देकर होरी निश्चिंत होना चाहता था, उन्हें बीच राह में असुरक्षित छोड़ जाने की पीड़ा होरी की अंतिम अनुभूति है। प्रेमचंद Premchand उसे बड़े ही मार्मिक ढंग से सामने रखते हैं-‘‘होरी खाट पर पड़ा शायद सब कुछ देखता था, सब कुछ समझता था; पर जबान बंद हो गयी थी। हाँ, उसकी आँखों से बहते हुए आँसू बतला रहे थे कि मोह का बंधन तोड़ना कितना कठिन हो रहा है। जो कुछ अपने से नहीं बन पड़ा, उसी के दुःख का नाम तो मोह है। पाले हुए कत्र्तव्य और निपटाये हुए कामों का क्या मोह! मोह तो उन अनाथों को छोड़ जाने में है, जिनके साथ हम अपना कत्र्तव्य न निभा सके; उन अधूरे मनसूबों में है जिन्हें हम न पूरा कर सके।’’
मरने वाले व्यक्ति के साथ दूसरों के संबंध किस प्रकार के है, इसी से निर्धारित होता है कि मुत्यु पर वे कैसा महसूस करते हैं। ‘पछाड़ खाकर’ गिर पड़ने वाली धनिया, ‘रोते हुए’ हीरा और ‘सामने खड़े’ दातादीन Datadeen के लिए होरी की मृत्यु का अर्थ अलग-अलग है। प्रेम जीवन को सुखमय बनाता है, इसीलिए प्रिय की मृत्यु सर्वाधिक दुःखदायी होती है। प्रेमी की मृत्यु दुनिया भर में ट्रेजडी के साहित्य का विषय बनी है। ‘आदिकाव्य’ Adikavya में वाल्मीकि Valmiki की पीड़ा ही यही है कि निषाद Nishad ने प्रेम में लीन पक्षियों के जोड़े में से एक को मार दिया, ‘गोदान’ Godan में इसी त्रासदी का विस्तार है। होरी के परिवार में सोना और रूपा अपने-अपने घर चली गई, गोबर भी झुनिया के साथ शहर में रहने लगा, लेकिन होरी और धनिया के लिए तो एक-दूसरे का ही सहारा था! धनिया Dhaniya के लिए होरी वह आधार था ‘जिस पर जीवन टिका हुआ था’ वह उसके ‘जीवन का संगी’ था और इसीलिए उसकी पीड़ा सबसे अधिक गहरी है।
एक आलोचक का कहना है कि होरी की मौत ‘हीरोइक’ (Heroic) नहीं है; यह बात सही है कि होरी की मौत बहुत गहरी करुणा जगाने के बावजूद होरी जैसा जीवन बिताने की प्रेरणा नहीं देती है- और न ही रचनाकार का ऐसा कोई उद्देश्य है। होरी की सबसे बड़ी त्रासदी ही यही है कि वह जिन परिस्थितियों में जी रहा है उसमें, अगर वह चाहे तब भी उसे ‘हीरोइक’ मौत नसीब नहीं हो सकती- उसका सारा जीवन अपने और अपनों के जीवन की गाड़ी खीचने में ही चुक जाता है। इसीलिए होरी की मौत उस जैसा बनने की प्रेरणा नहीं देती इसके उलट वह गोबर की पीढ़ी को यह चेतावनी देती है कि अगर उसे जीना है तो वह उस समाज को बदले जिसमें होरी मर जाता है।
होरी के अलावा जिन दो बच्चों की मौत उपन्यास मे आई है, वे मुख्य कथा का अंग नहीं है, इसके बावजूद उनकी मौत के प्रसंग गैर-जरूरी नहीं हैं। होरी गांव में जीता है, वहीं मर जाता है, गोबर Gobar की कमाई से उसे कोई लाभ नहीं होता; इस लिहाज से गोबर Gobar की शहर की कथा होरी की अपनी नियति से संबंध नहीं रखती। इसी तरह दातादीन Datadin तो होरी का शोषण करने के चलते उपन्यास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन मातादीन Matadeen की कथा का कोई लेना-देना होरी के जीवन और मृत्यु से नहीं है। फिर इन प्रसंगों और मौतों का क्या महत्व है? सामाजिक समस्याओं के समाधान और राजनीति की दृष्टि से गोदान Godan प्रेमचंद Premchand के अन्य उपन्यासों से कुछ अलग किस्म का है। इसमें सादगी के साथ समस्याओं की गंभीरता और सामाजिक यथार्थ की जटिलता को अंकित किया गया है और साथ ही यथास्थिति में परिवर्तन की मांग भी इस उपन्यास में अंतर्निहित है।
गोबर Gobar के बेटे की मौत शहरों में मजदूरों की गरीबी, आवास की समस्या, उपेक्षा, बुरी आदतें और नैतिक पतन का परिणाम है। सिलिया Siliya के बच्चे की मौत कुछ खास वजहों से बेहद महत्वपूर्ण है। जिस तरह गोबर Gobar और झुनिया Jhuniya के प्रसंग के माध्यम से यह उपन्यास Upanyas विधवा-विवाह को जोरदार समर्थन करता है, उसी तरह से सिलिया और मातादीन का संबंध अंतर्जातीय संबंधों का पक्ष लेता है। सिलिया Siliya के बच्चे की मौत केवल उपन्यास का एक मार्मिक प्रसंग भर नहीं है, जिस उद्देश्य से इन पात्रों को उपन्यास में रखा गया है, वह उसे उसकी अनिवार्य परिणति तक पहुंचाने में अपनी भूमिका अदा करता है। सिलिया Siliya का बच्चा जातिगत भेदभाव की बलि चढ़ जाता है और अपने बलिदान से वह मातादीन जैसे ब्राह्मण का हृदय परिवर्तन कर देता है।
प्रेमचंद Premchand के कथा साहित्य में किसान पात्रों की मृत्यु के बहुत से प्रसंग आए हैं। उनकी मौतें संख्या ही नहीं प्रभाव की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। किसान पात्रों की मौत का कारण अंततः उनकी गरीबी ही होती हैै। प्रेमचंद Premchand के किसान पात्र इतने सीधे, सरल और निरीह हैं कि अपनी ओर से वे किसी से झगड़ा मोल नहीं लेते, किसी का बुरा नहीं चाहते। इसके बावजूद जैसे सारी व्यवस्था ही उनकी दुश्मन होती है, वह किसान की संपत्ति और उसकी शक्ति का एक-एक कतरा चूस लेती है। इस पर भी जब वे अपनी मनुष्यता नहीं छोड़ते तो उन्हें अपनी जान देनी पड़ती है।
प्रेमचंद Premchand ने अपने कथा साहित्य में सचेत रूप से मृत्यु का बहुत मार्मिक और कलात्मक उपयोग किया है; लेकिन इन मौतों का सृजन केवल लेखकीय कौशल का परिणाम नहीं है। ये मौते एक तरफ तो उस युग का यथार्थ हैं, जिसमें लेखक अपना जीवन जी रहा था; दूसरी ओर ये लेखक की अपनी प्रतिबद्धता का प्रमाण भी हैं। यह बात आज के हिन्दी साहित्य- जिसमें आमतौर पर मृत्यु कम आती है- को देखते हुए और भी विश्वास के साथ कही जा सकती है। प्रेमचंद Premchand के साहित्य मंे आई इन मौतों को एक लेखक द्वारा अपने पाठकों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाने के लिए अपने युग में किये गये लेखकीय हस्तक्षेप के रूप में भी देखा जा सकता है।
संदर्भ
गोदान में मृत्यु और उसका सामाजिक अर्थ Godan mein mrityu ka samajik arth को जोंग किम Koh Jong Kim
Godana hindi sahitya ki sarvadhika mahatvapurna krritiyom mem se eka hai| hori ki mauta hindi sahitya ki sabase karuna mautom mem se eka hai| godana ki prasiddhi aura mahanata mem hori ki isa mrrityu ki mahatvapurna bhumika hai| godana mem hori ke sampurna jivana ki katha nahim hai, isamem kevala usake una amtima varshomm ki katha hai, jaba hori ka jivana ghisatate-ghisatate ruka jata hai| jisa taraha se hori ki mauta hoti hai, use eka durghatana mana ja sakata hai, lekina yaha eka aisi durghatana hai jise tala to ja sakata hai, lekina roka nahim ja sakata|
Hori Hori gariba hai, lekina gariba adami ke mana mem bhi akamkshaem hoti haim| hori jisa samaja mem rahata hai, usamem kisana sammanita vyakti mana jata hai, use apani ’marajada’ ki paravaha karani paड़ti hai| hori apani marajada ke lie apane daravaje para eka gaya dekhana chahata hai| usaki isa akamksha ka pata upanyasa ke arambha mem hi chala jata hai| yaha akamksha usake jivana ke amta taka bani rahati hai| marate vakta bhi hori ki ’gaya ki lalasa mana mem hi raha’ jati hai| eka taraha se gaya hori ki shashvata akamksha hai|
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Godana Godan premachamda ka amtima tatha sabase mahatvapurna upanyasa Upanyas hai| isamem shahara bhi hai aura gamva bhi, lekina mula katha hori ki hi hai| upanyasa eka gariba kimtu samtushta kisana hori ke jivana ke eka samanya se dina se shuru hokara daridra, kamajora aura majadura hori ki mauta ke satha khatma ho jata hai| vidvanom ne aksara godana Godan mem shahara aura gamva ki katha mem maujuda ’vibhajana’ ya ’phamka’ ki charcha ki hai| yaha phamka usa daura ki sachchai hai| shahari katha mem uchcha tatha madhyavargiya patrom ke apasi sambamdha tatha unaki samajika gatividhiyom ki charcha hai; jabaki gramina katha mem hori ka pura samsara, usake jivana se lekara usaki mauta taka ka marmika varnana hai| jo amtara sevasadana aura nirmala mem hai, vahi premashrama Premashram aura godana Godan mem bhi hai| sevasadana Sevasadan mem stri ki ghara se bahara nikalane para Ane vali samasyaom ka jikra hai, to nirmala Nirmala mem trasadi svayam ghara ke bhitara se hi paida hoti hai| premashrama Premashram mem kisana aura jamimdara ke sambamdhom ki katha kahi gai hai, jisamem Age chalakara jamimdara ka jivana hi jyada mahatvapurna ho jata hai; godana Godan mem jamimdara raya sahaba katha ke chote se patra haim, vaha j~nanashamkara ki taraha pratyaksha rupa se kisanom ki sabhi samasyaom ka mula nahim hai| hori ki trasadi bhi bahara se thopi hui nahim hai, vaha usake jivana ki paristhitiyom ke bhitara se hi janma leti hai|
Godana ke pahale hi adhyaya mem hori ki samajika-Arthika haisiyata ke satha-satha usake svasthya aura charitra ka pata laga jata hai| nirmala nirmala ki taraha hi godana mem bhi pathaka ko hori ki niyati (Destiny) ka purvabhasa mila jata hai; lekina vaha nirmala Nirmala ki taraha svapna ke jarie milane vala samketika purvabhasa nahim hai| hori Hori ko apani niyati ka pata kahim adhika spashtata se hai| dhaniya jaba buढ़ape mem durgati ki kalpana se bhayabhita hoti hai, to vaha kahata hai, ‘‘satha taka pahumchane ki naubata hi nahim aegi dhaniya Dhaniya! Isake pahale hi chala demge|’’ sachamucha kucha hi varshom bada vaha chala basata hai| usake jivana mem koi mahana ghatana nahim ghatati hai, rojamarra ki choti-choti ghatanaem hi dhire-dhire amta ki aura bahae lie jati hai| ramavilasa sharma Ramvilash Sharma ne bilkula thika kaha hai ki ‘‘yaham sailaba ka vega nahim hai, laharom ke thapeड़e nahim hai| yaham Upara se shamta dikhane vali nadi ki bhamvare haim, jo bhitara hi bhitara manushya ko dabakara talahati se laga deti hai aura dusarom ko vaha tabhi dikhai deta hai, jaba usaki lasha utarati hui bahane lagi|’’ yahi vajaha hai ki godana Godan mem hatya aura atmahatya jaisi eka bhi ghatana nahim hai|
Hori Hori ka eka prakriya ke tahata dhire-dhire pisate hue amtatah mara jana upanyasa ke amtarika tarka aura uddeshya ke lie anivarya hai| agara hori Hori na marata to bhi usake jivana ki dukhom ki katha vahi rahati jo pahale thi, lekina taba pathaka samasya ko utani gambhirata se kaise leta| use to kisana ka shoshana hi dikhata, yaha nahim dikha pata ki yaha shoshana kisana ki jana bhi le leta hai| hori ki mauta ke prasamga mem yaha dhyana rakhana jaruri hai ki hori vishishta hai, usaki vishishtata usake jivana ki sthitiyom ki kama, usake charitra ki vishishtata adhika hai| vaha kevala shoshana ke chalate hi nahim marata, vaha apane svabhava ke chalate bhi marata hai| hori ki mauta isalie hoti hai ki vaha garbhavati vidhava jhuniya ko eka bahu ke rupa mem apane ghara mem rakhata hai, usaki mauta isalie hoti hai kyameki vaha apana kama choड़kara puniya ka bakhara (Store House) bharane ki koshisha karata hai| hori janata hai ki ‘jaba dusare ke pamva tale apani gardana dabi hui ho to una pamvom ko sahalane hi kushala hai|’ isake bavajuda vaha una pamvom ko sahalane se mana kara deta hai – usaki mauta ki yahi vajaha thi| vaha pamchom ki chetavani ke bada bhi jhuniya ko apane ghara mem rakhata hai|
Jina paristhitiyom mem hori ki mauta hoti hai vaha use tatha usa jaise dusare kisanom majadurom ko upanyasa ke anya amira patrom se bilkula alaga kara deti hai| lu raya sahaba ko nahim laga sakati aura kisi taraha laga bhi gai to lu lagana koi aisi bimari to hai nahim jise thika na kiya ja sake-savala to haisiyata ka hai| hori Hori ke parivara mem bhi isa taraha ki yaha koi pahali mauta nahim thi, khuda dhaniya Dhaniya ke ‘‘tina laड़ke bachapana mem hi mara gae| usaka mana Aja bhi kahata tha, agara unaki dava daru hoti to ve bacha jate, para vaha eka dhele ki dava bhi na mamgava saki thi|’’ isa bara bhi vaha DA.cktara ko nahim bula payi kyomki pasa mem paise nahim the| isilie agara hori ki mauta durghatana hai bhi to aisi durghatana hai jo usaki paristhitiyom ke satha nirmita hui hai, jo usa jaisom ke satha hi ghata sakati hai|
Hori Hori ka marana anivarya nahim tha, vaha bacha sakata tha, lekina una shartom para jikara nahim jina para vaha jita tha, amtima bara milane para gobara Gobar hori se kahata hai ‘‘aurom ki taraha tumane bhi dusarom ka gala dabaya hota, unaki jama mari hoti to tuma bhi bhale adami hote| tumane kabhi niti ko na choड़a yaha usi ka danda hai|’’ aniti na karane ke bavajuda apani ‘gujare ki kheti’ se hori ka gujara chala sakata tha; agara use ‘marajada’ ki chimta na hoti, agara hira ke ghara se bhaga jane para usake khetom mem usaki bivi puniya Puniya ki madada karake usaka ‘bakhara bharane’ ki bajaya apana ghara bharata, agara vaha jhuniya Jhuniya ko ghara mem rakhane se imkara kara deta, agara vaha baila kholakara le jane ki bata ko bhola ke ‘dharama’ ke Upara na choड़ta| lekina jahira hai ki taba hori ‘hori’ nahim hota| apani sthitiyom aura svabhava bodha ke karana hi hori bahuta pahale se janata hai aura dhaniya se kahata bhi hai ki ‘‘satha taka pahu.Nchane ki naubata hi na Ane paegi dhaniya! Isake pahale hi chala demge|’’
Hori ki mauta achanaka ho jati hai-lu lagane aura samsara se vida ho jane mem use kevala kucha hi ghamte lagate haim| vaha dhaniya se kevala eka bara kucha kahata hai aura una vakyom mem usaki samasta piड़a aura akamksha simata ayi hai, usane ‘‘dhaniya ko dina A.nkhom se dekha, donom konom se A.nsu ki do ba.nudem Dhulaka paड़im| kshina svara mem bola-mera kaha-suna mapha karana dhaniya! Aba jata hu.N| gaya ki lalasa mana mem hi raha gayi| aba to yaha.N ke rupae kriya karma mem jayamege| ro mata dhaniya, aba kaba taka jilayegi? Saba durdasha to ho gai| aba marane de|’’ isa amtima samaya mem hori ko kisi se shikayata nahim hai, kyomki kucha pane ki ichcha nahim hai, ulte aparadha bodha hai kucha na de pane ka, jisane use ‘jilaye’ rakha, sari ‘durdasha’ sahi, usake prati apana katrtavya na nibha pane ka| takalipha hai jate-jate amtima rupayom se jivitom ke lie gaya kharidanem ke bajaya ‘kriya karma’ mem kharcha karava dene para|
Amtima kshanom mem hori ki hatasha aura duhkha ka karana usake apane jivana ka moha nahim, apanom ka moha hai| jina logom ko sukha aura suraksha dekara hori nishchimta hona chahata tha, unhem bicha raha mem asurakshita choड़ jane ki piड़a hori ki amtima anubhuti hai| premachamda Premchand use baड़e hi marmika dhamga se samane rakhate haim-‘‘hori khata para paड़a shayada saba kucha dekhata tha, saba kucha samajhata tha; para jabana bamda ho gayi thi| ha.N, usaki A.nkhom se bahate hue A.nsu batala rahe the ki moha ka bamdhana toड़na kitana kathina ho raha hai| jo kucha apane se nahim bana paड़a, usi ke duhkha ka nama to moha hai| pale hue katrtavya aura nipataye hue kamom ka kya moha! Moha to una anathom ko choड़ jane mem hai, jinake satha hama apana katrtavya na nibha sake; una adhure manasubom mem hai jinhem hama na pura kara sake|’’
Marane vale vyakti ke satha dusarom ke sambamdha kisa prakara ke hai, isi se nirdharita hota hai ki mutyu para ve kaisa mahasusa karate haim| ‘pachaड़ khakara’ gira paड़ne vali dhaniya, ‘rote hue’ hira aura ‘samane khaड़e’ datadina Datadeen ke lie hori ki mrrityu ka artha alaga-alaga hai| prema jivana ko sukhamaya banata hai, isilie priya ki mrrityu sarvadhika duhkhadayi hoti hai| premi ki mrrityu duniya bhara mem trejadi ke sahitya ka vishaya bani hai| ‘adikavya’ Adikavya mem valmiki Valmiki ki piड़a hi yahi hai ki nishada Nishad ne prema mem lina pakshiyom ke joड़e mem se eka ko mara diya, ‘godana’ Godan mem isi trasadi ka vistara hai| hori ke parivara mem sona aura rupa apane-apane ghara chali gai, gobara bhi jhuniya ke satha shahara mem rahane laga, lekina hori aura dhaniya ke lie to eka-dusare ka hi sahara tha! Dhaniya Dhaniya ke lie hori vaha adhara tha ‘jisa para jivana tika hua tha’ vaha usake ‘jivana ka samgi’ tha aura isilie usaki piड़a sabase adhika gahari hai|
Eka Alochaka ka kahana hai ki hori ki mauta ‘hiroika’ (Heroic) nahim hai; yaha bata sahi hai ki hori ki mauta bahuta gahari karuna jagane ke bavajuda hori jaisa jivana bitane ki prerana nahim deti hai- aura na hi rachanakara ka aisa koi uddeshya hai| hori ki sabase baड़i trasadi hi yahi hai ki vaha jina paristhitiyom mem ji raha hai usamem, agara vaha chahe taba bhi use ‘hiroika’ mauta nasiba nahim ho sakati- usaka sara jivana apane aura apanom ke jivana ki gaड़i khichane mem hi chuka jata hai| isilie hori ki mauta usa jaisa banane ki prerana nahim deti isake ulata vaha gobara ki piढ़i ko yaha chetavani deti hai ki agara use jina hai to vaha usa samaja ko badale jisamem hori mara jata hai|
Hori ke alava jina do bachchom ki mauta upanyasa me AI hai, ve mukhya katha ka amga nahim hai, isake bavajuda unaki mauta ke prasamga gaira-jaruri nahim haim| hori gamva mem jita hai, vahim mara jata hai, gobara Gobar ki kamai se use koi labha nahim hota; isa lihaja se gobara Gobar ki shahara ki katha hori ki apani niyati se sambamdha nahim rakhati| isi taraha datadina Datadin to hori ka shoshana karane ke chalate upanyasa mem eka mahatvapurna bhumika nibhate haim, lekina matadina Matadeen ki katha ka koi lena-dena hori ke jivana aura mrrityu se nahim hai| phira ina prasamgom aura mautom ka kya mahatva hai? Samajika samasyaom ke samadhana aura rajaniti ki drrishti se godana Godan premachamda Premchand ke anya upanyasom se kucha alaga kisma ka hai| isamem sadagi ke satha samasyaom ki gambhirata aura samajika yathartha ki jatilata ko amkita kiya gaya hai aura satha hi yathasthiti mem parivartana ki mamga bhi isa upanyasa mem amtarnihita hai|
Gobara Gobar ke bete ki mauta shaharom mem majadurom ki garibi, avasa ki samasya, upeksha, buri adatem aura naitika patana ka parinama hai| siliya Siliya ke bachche ki mauta kucha khasa vajahom se behada mahatvapurna hai| jisa taraha gobara Gobar aura jhuniya Jhuniya ke prasamga ke madhyama se yaha upanyasa Upanyas vidhava-vivaha ko joradara samarthana karata hai, usi taraha se siliya aura matadina ka sambamdha amtarjatiya sambamdhom ka paksha leta hai| siliya Siliya ke bachche ki mauta kevala upanyasa ka eka marmika prasamga bhara nahim hai, jisa uddeshya se ina patrom ko upanyasa mem rakha gaya hai, vaha use usaki anivarya parinati taka pahumchane mem apani bhumika ada karata hai| siliya Siliya ka bachcha jatigata bhedabhava ki bali chaढ़ jata hai aura apane balidana se vaha matadina jaise brahmana ka hrridaya parivartana kara deta hai|
Premachamda Premchand ke katha sahitya mem kisana patrom ki mrrityu ke bahuta se prasamga Ae haim| unaki mautem samkhya hi nahim prabhava ki drrishti se bhi mahatvapurna haim| kisana patrom ki mauta ka karana amtatah unaki garibi hi hoti haiai| premachamda Premchand ke kisana patra itane sidhe, sarala aura niriha haim ki apani ora se ve kisi se jhagaड़a mola nahim lete, kisi ka bura nahim chahate| isake bavajuda jaise sari vyavastha hi unaki dushmana hoti hai, vaha kisana ki sampatti aura usaki shakti ka eka-eka katara chusa leti hai| isa para bhi jaba ve apani manushyata nahim choड़te to unhem apani jana deni paड़ti hai|
Premachamda Premchand ne apane katha sahitya mem sacheta rupa se mrrityu ka bahuta marmika aura kalatmaka upayoga kiya hai; lekina ina mautom ka srrijana kevala lekhakiya kaushala ka parinama nahim hai| ye maute eka tarapha to usa yuga ka yathartha haim, jisamem lekhaka apana jivana ji raha tha; dusari ora ye lekhaka ki apani pratibaddhata ka pramana bhi haim| yaha bata Aja ke hindi sahitya- jisamem Amataura para mrrityu kama ati hai- ko dekhate hue aura bhi vishvasa ke satha kahi ja sakati hai| premachamda Premchand ke sahitya mame AI ina mautom ko eka lekhaka dvara apane pathakom ko unake kartavyom ke prati jagaruka banane ke lie apane yuga mem kiye gaye lekhakiya hastakshepa ke rupa mem bhi dekha ja sakata hai|
Samdarbha
Godan mein mrityu aur usaka samajik arth Koh Jong Kim</div>
godan ka aalochana hame nai dristi deti hai……..ic aalochana k jariye ham godan uppanyas ko naye sire se dekh aur samajh saktr hai.
godan oupniyas bhut accha he
i want big reply now
गोदान की आलोचना हमें नई दृष्टि देती है.
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गोदान की रचना ही कुछ ऐसी है की हमारे जीवन की मर्मता का अविर्भाव दिखाती है .
this upanyas very smart
Muje yah upnyas bahut acha laga
Muje yah upnyas bahut acha laga
जीवन में जन्म गरीब और दरिद्र का वास होता कभी सुख का प्रभास और ना ही सुख का भोग किया जा सकता है