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देश की शिक्षित जनसंख्या पर नजर डालें तो यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है कि पत्रिकाएं एक छोटे से तबके तक सीमित होकर रह गयी हैं। कुछ हजारों की संख्या वाले इस तबके को हम अकादमिक एलीट कह सकते हैं। यानी बहस जिनके नाम पर की जा रही है, उनकी ही पहुंच से दूर है। हम ये तो नहीं कह सकते कि पत्रिकाएं गैर जरूरी मुद्दों को उठा रहीं है, बावजूद इसके बाजार (जिसका स्वरूप प्रभु वर्ग ही तय करता है) के प्रभाव को नजरंदाज करना उनके लिये मुश्किल होता है। इसी से जुड़ी दूसरी बड़ी समस्या यह है कि पत्र-पत्रिकाओं के अंक जल्द ही अनुपलब्ध हो जाते हैं। महत्वपूर्ण मुद्दे भी उन्हीं के साथ ही चर्चा से बाहर हो जाते हैं। दूसरी तरफ यह सामग्री पत्रिका के सीमित दायरे के कारण बहुत सारे पाठकों की पहुंच के बाहर रह जाती हैं। हमारी कोशिश फ्री एक्सेस के जरिये महत्वपूर्ण सामग्री को व्यापक दायरे तक पहुंचाने की है।
उक्त कोशिश अपरिहार्य रूप से एक उद्देश्य के साथ जुड़ी हुई है। मौजूदा दौर में वर्ग, जेंडर, जाति, सबाल्टर्न और आदिवासियों से लेकर पर्यावरण तक के संवेदनशील विमर्श नई बौद्धिक ऊर्जा के साथ उभरे हैं। लेकिन यह एक विडम्बना है कि जिस क्रम में बौद्धिकता का विकास हुआ है, उसी अनुपात में बौद्धिक कर्म और जमीनी आन्दोलनों के बीच अलगाव भी बढ़ा है। हमारा सरोकार यह है कि हाशिये की चिंता सिर्फ बौद्धिक विमर्श बन कर न रह जाए। ज्ञान और कर्म के बीच सार्थक संवाद स्थापित हो ताकि बहस बदलाव को दिशा दे सके। हम चाहते हैं कि मुद्दे जिन्दा रहें, बहस तब तक चले जब तक जरूरत बाकी है। हम इस वेबसाइट को एक ऐसे मंच के रूप में विकसित करना चाहते हैं, जहां सार्थक मुद्दों की पहचान की जाए और उनपर बहस की जा सके। इसके लिये हम महत्वपूर्ण लेखों को सामने लाएंगे और उनसे सार्थक बहस के लिये आपको स्पेस उपलब्ध कराएंगे। बहस तक पाठकों की पहुंच लगातार बनी रहे इसलिये यहां मौजूद सभी लेखों को हम ओपन एक्सेस के अंतर्गत रखेंगे। लेख स्तरीय हों, वे किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप या अश्लीलता का नमूना न हों, इसलिये संपादक मंडल की नजर से गुजरकर ही वेबसाइट पर आएंगे। हम चाहेंगे कि इस मंच के लिये आप अपनी टिप्पणियां और सुझाव हमें देते रहें और अगर हमारे लिये लिख सकते हों या अपने लेख (प्रकाशित/ अप्रकाशित) भेंज सकते हों तो हम आपके लेखों का स्वागत करेंगे। हम एक पत्रिका की शुरुआत करने की योजना भी बना रहे हैं, हालांकि उसका भविष्य अभी पूरी तरह आपके बौद्धिक सहयोग और संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर है।
उक्त कोशिश अपरिहार्य रूप से एक उद्देश्य के साथ जुड़ी हुई है। मौजूदा दौर में वर्ग, जेंडर, जाति, सबाल्टर्न और आदिवासियों से लेकर पर्यावरण तक के संवेदनशील विमर्श नई बौद्धिक ऊर्जा के साथ उभरे हैं। लेकिन यह एक विडम्बना है कि जिस क्रम में बौद्धिकता का विकास हुआ है, उसी अनुपात में बौद्धिक कर्म और जमीनी आन्दोलनों के बीच अलगाव भी बढ़ा है। हमारा सरोकार यह है कि हाशिये की चिंता सिर्फ बौद्धिक विमर्श बन कर न रह जाए। ज्ञान और कर्म के बीच सार्थक संवाद स्थापित हो ताकि बहस बदलाव को दिशा दे सके। हम चाहते हैं कि मुद्दे जिन्दा रहें, बहस तब तक चले जब तक जरूरत बाकी है। हम इस वेबसाइट को एक ऐसे मंच के रूप में विकसित करना चाहते हैं, जहां सार्थक मुद्दों की पहचान की जाए और उनपर बहस की जा सके। इसके लिये हम महत्वपूर्ण लेखों को सामने लाएंगे और उनसे सार्थक बहस के लिये आपको स्पेस उपलब्ध कराएंगे। बहस तक पाठकों की पहुंच लगातार बनी रहे इसलिये यहां मौजूद सभी लेखों को हम ओपन एक्सेस के अंतर्गत रखेंगे। लेख स्तरीय हों, वे किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप या अश्लीलता का नमूना न हों, इसलिये संपादक मंडल की नजर से गुजरकर ही वेबसाइट पर आएंगे। हम चाहेंगे कि इस मंच के लिये आप अपनी टिप्पणियां और सुझाव हमें देते रहें और अगर हमारे लिये लिख सकते हों या अपने लेख (प्रकाशित/ अप्रकाशित) भेंज सकते हों तो हम आपके लेखों का स्वागत करेंगे। हम एक पत्रिका की शुरुआत करने की योजना भी बना रहे हैं, हालांकि उसका भविष्य अभी पूरी तरह आपके बौद्धिक सहयोग और संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर है।